रहिमन सीधे चालसौं, प्यादा होत वजीर
कविवर रहीम कहते हैं कि प्रेम में कभी भी टेढ़ी चाल नहीं चली जाती। जिस तरह शतरंज के खेल में पैदल सीधी चलकर वजीर बन जाता है वैसे ही अगर किसी व्यक्ति से सीधा और सरल व्यवहार किया जाये तो उसका दिल जीता जा सकता है।
प्रेम पंथ ऐसी कठिन, सब कोउ निबहत नाहिं
रहिमन मैन-तुरगि बढि, चलियो पावक माहिं
कविवर रहीम कहते हैं कि प्रेम का मार्ग ऐसा दुर्गम हे कि सब लोग इस पर नहीं चल सकते। इसमें वासना के घोड़े पर सवाल होकर आग के बीच से गुजरना होता है।
आज के संदर्भ में व्याख्या-आजकल जिस तरह सब जगह प्रेम का गुणगान होता है वह केवल बाजार की ही देन है जो युवक-युवतियों को आकर्षित करने तक ही केंद्रित है। उसे प्रेम में केवल वासना है और कुछ नहीं है। सच्चा प्रेम किसी से कुछ मांगता नहीं है बल्कि उसमें त्याग किया जाता है। सच्चे प्रेम पर चलना हर किसी के बस की बात नहीं है। प्रेम में कुछ पाने का आकर्षण हो तो वह प्रेम कहां रह जाता है। सच तो यह है कि लोग प्रेम का दिखावा करते हैं पर उनके मन में लालच और लोभ भरा रहता है। लोग दूसरे का प्यार पाने के लिये चालाकियां करते हैं जो कि एक धोखा होता है।
सच बात तो यह है कि लोग प्रेम करने की बात तो करते हैं पर उसका उनके हृदय मेंं कोई स्थान नहीं होता। वैसे तो आपस में दोस्ती और रिश्तेदारी होने से लोग एक दूसरे के संपर्क में रहते हुए प्रेम होने का दावा करते हैं पर जब एक दूसरे से स्वार्थ पूरा नहीं होता तो फिर उन्हीं संबंधों में कटुता आ जाती है। प्रेम में किसी से आशा नहीं करना चहिये पर लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये किसी का ऐसी चालें चलते हैं कि कोई उनके प्रेमजाल में फंस जाये। आज की युवा पीढ़ी तो प्रेम का नारा लगाते नहीं थकती और चालाकियों से संपर्क बनाने का कोई उपाय नहीं छोड़ती।
अनेक कथित और गुरु प्रेम को लेकर तमाम तरह की बातें करते हैं पर वह स्वयं नहीं जानते कि वह होता क्या बला है? ऐसे कथित अध्यात्मिक गुरू बस अपने से ही प्रेम करते हैं और अपने शिष्यों के साथ उनका प्रेम एक तरह से ढोंग ही होता है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
बहुत सुंदर व्याख्या की है आपने.
आज कल लोग प्रेम का अर्थ ही नहीं समझ पाते, प्रेम क्या करेंगे? प्रेम को तो लोगों ने एक अर्थहीन शब्द बना दिया है. जिससे प्रेम करते हैं उस पर अधिकार जमाते हैं, हर समय कुछ न कुछ पाने की इच्छा रखते हैं. अगर नहीं मिलता तो हिंसक हो जाते हैं. यह प्रेम नहीं है, यह वासना है.
बहुत सुन्दर । इसी को कबीर ने आगे (शायद चरम पर) पहुंचाया - 'प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाय ।'
रहीम के और दोहे पढवाएंगे तो अच्छा लगेगा ।
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