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Saturday, October 30, 2010

धार्मिक विचार-मन शरीर और वाणी के दंड धारण करने वाला ही सुखी (dharmik vichar-man,sharir aur vani ke dand)

मनु महाराज के अनुसार 
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त्रिदण्डमेतिन्निक्षप्य सर्वभूतेषु मानवः।
कामक्रोधी तु संयभ्य ततः सिद्धिं नियच्छति।।
हिन्दी में भावार्थ-
जो मनुष्य सभी जीवों के साथ मन, शरीर वह वाणी तीनों प्रकार के दंडों का पालन करते हुए व्यवहार करता है वह किसी को पीड़ा नहीं देता। उसका काम व क्रोध के साथ ही अपने आचरण पर भी संयम रहता है जिसके कारण वह सिद्ध कहलाता है।

वाग्उण्डोऽडःकायादण्डस्तथैव च।
वसयैते निहिता बुद्धौ त्रिडण्डीति स उच्यते
हिन्दी में भावार्थ-
जो मनुष्य सोच विचार कर वाणी का प्रयोग करते हुए देह और मन पर अपना नियंत्रण बनाये रखते हैं उसे त्रिदंडी कह जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य अपने कर्मों से मन, शरीर और वाणी के द्वारा बंधा रहता है। जिस तरह का कोई कर्म करता है वैसा ही उसे परिणाम प्राप्त होता है। सिद्ध व्यक्ति वही है जो दृष्टा की तरह अपने मन, शरीर और वाणी को अभिव्यक्त होते देखता है। इसलिये वह उन पर नियंत्रण करता है। दृष्टा होने के कारण मनुष्य के किसी भी कर्म के प्रति अकर्ता का भाव पैदा होता है जिससे उसके अंतर्मन में विद्यमान अहंकार की भावना प्रायः समाप्त हो जाती है।
ऐसा निरंकार मनुष्य मन, वचन और शरीर से संयम पूर्वक जीवन व्यतीत करता है और इससे न केवल वह अपना बल्कि दूसरे लोगों के जीवन का भी उद्धार करता है। इससे दूसरे लोग भी प्रसन्न होते हैं और उसका सिद्ध की उपाधि प्रदान करते हैं। जिन मनुष्यों के पास तत्व ज्ञान है वह अपने मुख से आत्मप्रचार कर अपने व्यवहार और आचरण से ही अपनी सिद्धि को प्रमाण करते है। जिनको ऐसा सिद्ध बनना है उनको चाहिये कि वह मन, वचन और देह के दंडों पर अभ्यास से नियंत्रण करें। ऐसी सिद्धि योगासन, प्राणायाम तथा ध्यान से प्राप्त कि जा सकती है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक राज  कुकरेजा 'भारतदीप',ग्वालियर मध्य प्रदेश
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep' Gwalior Madhya Pradesh
http://deepkraj.blogspot.com

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Friday, October 01, 2010

राम की लीला राम ही जाने (ram ki leela ram he jane)

घर से बाहर निकलकर जैसे ही स्कूटर पर सवार हुआ, वैसे ही पास से गुजरते दो आदमियों का वार्तालाप कानों में सुनाई दिया। एक दूसरे से कह रहा था कि ‘आज तो शहर में धारा 144 लागू है। अयोध्या के राम मंदिर पर फैसला आने वाला है।’
दूसरा बोला-हां, अयोध्या के राम मंदिर पर अदालत का फैसला साढ़े तीन बजे आयेगा। आज बच्चे भी स्कूल नहंी गये हैं। बता रहे हैं कि टैम्पो और ऑटो भी साढ़े तीन बजे के बंद हो जायेंगेे। एक तरह से शहर में सन्नाटा छा जायेगा।’’
मैं सोच रहा हूं कि मेरा इस विषय से संबंध नहीं है क्योंकि घर तो अपने ही वाहन से मुझे वापस आना है। राम मंदिर पर फैसला! याद आया, पिछले कई बरसों से मेरे जेहन में बसा है राम मंदिर! मन में तो राम भी बसे हैं पर मंदिर एक अलग विषय है। राम पर चर्चा करने में मज़ा आता है पर अयोध्या का राम मंदिर अब गुजरे ज़माने की बात लगता है। ऐसा लगता है कि मेरी बुद्धि समय दूसरों के विषय पर काम करती थी जब इस विषय पर लोगों से चर्चा करता था। अब स्वतंत्र रूप से सोचता हूं तो लगता है कि राम मंदिर तो मेरे पास ही है। अपने कार्यस्थल से आते जाते दोनेां की बार ही मार्ग में पड़ता है जहां समय मिलने पर अवश्य जाता हूं। एक विष्णु जी का भी मंदिर है जहां परिवार के साथ जाना होता है। मोहल्ले से थोड़ी दूरी पर ही हनुमानजी और शिवजी के मंदिर हैं और वहां ध्यान लगाने में बहुत मज़ा आता है। जिन मंदिरों में जाता हूं मुझे वही सिद्ध लगते हैं जहां नहीं गया उनको हृदय में अब स्थान नहीं दे पाता। पता नहीं कभी अयोध्या जाना होगा या नहंी, पर अभी तक अनेक बार वृंदावन और उज्जैन में जाकर ही मुझे आनंद प्राप्त करने का अवसर मिला है।
एक राम मेरे अंदर है जहां उनकी अयोध्या उनकेसाथ है तो दूसरी अयोध्या मुझसे बहुत दूर है। मेरी आस्था मेरे घर के आसपास ही सिमटती जाती है और अपना स्कूटर लेकर चल पड़ता हूं। सोचता हूं-‘शाम को आकर टीवी पर समाचार सुनूंगा।’
शाम को चार बजे हैं। एक मित्र से फोन पर पूछता हूं कि-‘क्या अयोध्या के राम मंदिर पर फैसले का कोई समाचार आया?’’
वह बताता है कि ‘अभी नहीं आया! साढ़े चार बजे तक आने की संभावना है।’
मैं घर चलने की तैयारी में हूं। एक मित्र रास्ते में मिल जाता है। उससे बात करता हूं तो वह कहता है कि चलो, थोड़ी दूर चलकर चाय पीते हैं।
मैं उसे बिठाकर बाज़ार मंे आता हूं। दुकानें बंद हैं! मैंने कहा-‘पता नहीं आज यह बाज़ार क्यों बंद है! वह होटल वाला भी बंद कर गया, सुबह तो खुला था!
मित्र ने कहा-‘अरे यार, याद आया आज तो अयोध्या में राम मंदिर पर फैसला आना था। इसलिये उपद्रव होने की आशंका में बाज़ार बंद हो गया है। चलो फिर कल मिलेंगे।’
वह स्कूटर से उतरता ही है कि एक अन्य मित्र वहां से कहीं से निकलकर आया। मैने उत्सुकतावश पूछा-‘तुमने राम मंदिर के फैसले पर समाचार सुना है।’
वह बोला-‘हां, पूरा तो सुन नहीं पाया पर विवादित ज़मीन को तीनों पक्षों में एक समान बांटने का निर्णय सुनाया गया है। बाकी पूरा सुनने ही घर जा रहा हूं। मुख्य बात यह है कि रामलला की मूर्तियां वहां से नहीं हटेंगी।’
पहला वाला मित्र जो अभी वहीं खड़ा था‘-यार आपकी पूरी बात समझ में नहीं आयी। अभी जाकर समाचार सुनते हैं।’
मैंने कहा-‘अभी तो पूरे समाचार आने हैं। घर जाकर देखते हूं कि क्या फैसला और कैसा है।’’
मैं चल पड़ता हूं। रास्ते भर सन्नाटा छाया लगता है। बाज़ार में कुछ ही दुकाने खुली हुईं हैं। आवागमन भी अत्यंत कम है। यह दृश्य या तो एकदम सुबह दिखता है या रात को दस बजे के बाद! जिन मार्गों पर जाम लगते हैं वहां पर आसानी से चला जा रहा हूं। कुछ जगह लड़के झुंड बनाकर खड़े हैं तो उनको देखता हूं कि कहंी वह किसी विवाद में तो नहीं लगे हैं। कुछ सड़कों पर बच्चे इधर से उधर बड़े आराम से जा रहे हैं जहां उनको वाहनों की कम आवाजाही के कारण भय नहीं रहता।
मेरा घर शहर से दूर है। सोचता हूं मेरे घर के आसपास ऐसा नहीं होगा। मगर जैसे ही अपने घर के पास पहुंचता हूं। सारी दुकाने बंद हैं। कहंी ठेले नहंी लगे। पूरा शहर भयाक्रांत लगता है? किसलिये? ऐसा लगता है कि जैसे सभी को डरा दिया गया है। इतिहास की पुनरावृत्ति की आशंकाऐं सभी को कंपित किये हुए हैं। लोग चिंतित हैं और मैने बड़ी बेफिक्री से अपना रास्ता तय किया है। अचानक मेरे मन में राम के प्रति भावनाओं का ज्वार उठने लगता है।
मैं सोच रहा हूं कि किस राम मंदिर पर फैसला आया है और मैं किस राम मंदिर में जाता हूं। वह राम कौनसे हैं और मेरे राम कौनसे हैं। मेरे राम ने मुझे इतनी बेफिक्री दी कि बिना बाधा के अपना मार्ग तय कर आया और कहीं भय नहीं लगा पर वह कौन से राम हैं जिन्होंने लोगों को फिक्र देकर घर में बंद कर दिया। जिस राम मंदिर पर फैसला आया उससे मेरे क्या लेना देना था और अपने शहर के जिस राम मंदिर में जाता हूं वह तो निर्विवाद खड़ा है। अंतर्मन दो राम मंदिरों में बंटता दिखाई देता है। मैं अंदर और बाहर स्थित राम के दोनों रूपों को मिलाने का प्रयास करता हूं। तब ऐसा लगता है कि मेरे राम और बाहर के राम अलग हैं। मेरे मन के बाहर स्थित राम के रूप के प्रति कोई आकर्षण क्यों नहीं है? मैं दिमाग पर जोर डालता हूं पर कोई उत्तर नहीं नज़र आता? तब सोचना बंद करता हूं। आखिर राम तो राम हैं! उनके अनेक रूप हैं! वह दिव्य है और मेरे अंदर और बाहर के चक्षु उतना ही देख सकते हैं जितना एक आम इंसान। मैं कोई सिद्ध नहीं हूं कि उनके चरित्र का वर्णन कर सकूं।
अपना स्कूटर लेकर मैं घर के अंदर प्रविष्ट हो जाता हूं जहां टीवी पर यही समाचार आ रहा है। उसमें भी दिलचस्पी नहंी रह जाती क्योंकि उसका सार मैं पहले ही सुन चुका हूं। मन ही मन कहता हूं कि‘-राम की लीला राम ही जाने। मेरे राम मेरे पास और उनका मंदिर भी दूर नहीं है चाहे जब जा सकता हूं फिर क्यों चिंता करूं।’
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संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://teradipak.blogspot.com
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