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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, July 28, 2016

(Ghar mein hi khol len man Ki pryogshala)

घर में ही खोल लें मन की प्रयोगशाला
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मनुष्य दो शब्दों मन व उष्णा शब्द से बना है। इसका आशय यह है कि इस धरी तरह जितने भी जीवन उसमें सबसे अधिक अग्नि मनुष्य के मन में ही है। मन के बाद माया का खेल शुरु होता है जिसमें मनुष्य पूरा जीवन बिता देता है।
हमारा मन तथा बुद्धि इंद्रियों के वश किस तरह काम करते हैं इसका अनुसंधान अपने ही घर में कर सकते हैं।  हमारे टीवी पर अनेक प्रकार के चैनल आते हैं। मनोरंजन, अध्यात्म, संगीत, कार्टून तथा ज्ञानविज्ञानवर्धक सामग्री प्रसारित करने वाले इन चैनलों को बदल बदल कर हम उसका मन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करें।  हर बार मन में अलग प्रकार का रस पैदा होगा।
समाचार चैनलों को सुनेंगे तो पायेंगे कि संसार में हिंसा, कत्ल तथा अपराध का बोलबाला है। मन में क्लेशपूर्ण विचार तथा बुद्धि में कटु सोच पैदा होती है। संगीत सुनने पर मन मयूर की तरह नाचने लगता है। कार्टून चैनल से मन एकदम बच्चा हो जाता है। ज्ञान विज्ञान की खोज वाले चैनल मन मेें जिज्ञासा का भाव पैदा करते हैं। अध्यात्म चैनल मन को शांत कर देते हैं। किसी भी संत का प्रवचन हो भजन मन में एक अजीब प्रकार की स्थिरता पैदा करता है। हमारे यहां अनेक कथित विद्वान लोग संतों के वैभव, शिष्य समुदाय तथा अन्य राजसी कार्यों पर प्रश्न उठाया  करते हैं पर बाह्य आंखें बंद तथा मन की खुली रखने वाले इनके प्रवचन का लाभ उठाते हैं।  हमें क्या मतलब किस संत का आचरण या व्यवहार कैसा है? हां, सामने पर्दे पर उनके प्रवचन अगर मन को शांति प्रदान करने वाले होते हैं तो हमें लाभ उठाना चाहिये।  आजकल गुरु बनाने के लिये किसी के आश्रम पर जाने की आवश्यकता ही नहीं है। घर बैठे ही किसी को भी गुरु बनाकर शिष्यत्व का आनंद प्राप्त करें।
कहनेे का अभिप्राय है कि भले ही आजकल के भौतिक साधनों के उपभोग को कुछ लोग गलत माने पर अगर सदुपयोग किया जाये तो हमें घर बैठे ही तीर्थस्थानों जैसा आनंद प्राप्त कर सकते हैं। एक बात याद रखिये इस जीवन में मनुष्य के स्वयं के दृष्टिकोण का ही महत्व है। इसलिये अगर कुछ लोग विद्रोह या परिवर्तन के नाम  पर वर्तमान युग के नकारात्मक पक्ष पर ही ध्यान देते हैं तो उन पर ध्यान देने की बजाय हमें अपने ही मस्तिष्क के द्वार खोलकर मन को उसी राह पर ले जाना  चाहिये जहां सकारात्मक दृष्टिकोण बने।
ओम तत् सत्
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Wednesday, July 13, 2016

लाशों में ढूंढ रहे दुआ-हिन्दी व्यंग्य कविता(Lashon mein DhoonDh rahe Duaa-HindiSatirePoem)


दिल के दरवाजे
बंद कर लिये
प्यार की दस्तक
अब वह कहां सुनेंगे।

संबंध के बिगड़े हिसाब
दोस्त तब वफा के
वादे क्यों बुनेंगे।

कहें दीपकबापू जज़्बात से
जीने की आदत
नहीं रही इंसानों में
लाशों में ढूंढ रहे दुआ
जिंदादिली वह क्यों चुनेंगे।
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