समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, December 30, 2008

संत कबीर वाणी:हीरे का होता है मोल, पर सुंदर शब्द कहलाते हैं अनमोल

शब्द बराबर धन नहीं, जो कोय जानै बोल
हीरा तो दामों मिलै, सब्दहिं मोल न तोल

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अगर कोई अपनी वाणी से शब्द बोलना जानता हो तो वास्तव में उचित शब्द के बराबर कोई धन नहीं है। हीरा तो फिर भी पैसा खर्च करने पर मिल जाता है पर दूसरे को प्रभावित करने वाले शब्द हर कोई नहीं बोल पाता।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-आज के भौतिक युग में लोगों के संवेदनशीलता कम होती जा रही है। किसी से प्रेमपूर्वक बोलना चमचागिरी कहा जाता है। सच तो यह है कि लोग उसी से प्रेम से बोलते हैं जिससे कोई काम निकलता है या किसी से डरते हैं। अपने से छोटे या निम्न व्यक्ति के साथ तो हर कोई शुष्क और कठोर व्यवहार करता है। इसका एक पक्ष यह भी है कि अगर किसी से प्रेमपूर्वक बात की जाये तो वह सामने वाले को कमजोर और डरपोक समझने लगता है। कुछ लोग तो ऐसे भी है जो प्रेम ओर मित्रता से बात करने पर मखौल उड़ाने लगते हैं। इसके बावजूद विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। हमें अपना व्यवहार साफ रखना चाहिए। जितना हो सके सुंदर और मधुर वाणी में बोलना चाहिए।

एक सच यह भी है कि मधुर और प्रेमपूर्ण वाणी भी तभी बोली जा सकती है जब अपना मन साफ हो। अगर मन में कुविचार रखकर किसी से मधुर वाणी में बोलेंगे तो उसका कोई प्रभाव नहीं होता। किसी से डरकर भी जब उससे मधुर शब्द बोलते हैं तो वह समझ जाता है। कई लोग तो मधुर शब्द बोलकर ठगते हैं और यह सब लोग समझ जाते हैं। अतः मन में स्वच्छता रखकर हम किसी से बात करेंगे तो हमारी वाणी से सुंदर और मधुर शब्द जरूर निकलेगें और उसका प्रभाव भी होगा।
इसके अलावा आजकल लोगों में सहज वार्तालाप के दौरान ही अनावश्यक रूप से गालियाँ देने की प्रवृति बढ़ती जा रही है जो कि ख़राब है. खासतौर से पढ़े लिखे लोग इसका शिकार हो रहे हैं. इससे व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों पर पानी फ़िर जाता है और छोटों की दृष्टि में बड़ों का सम्मान कम होता है. सबसे बड़ी बात यह है की हम इसके प्रभावों का अध्ययन नहीं करते. जब कोई दूसरा गाली देता हैं हमें स्वयं को अटपटा लगता है पर जब हम बोलते हैं तो यह नहीं सोचते कि दूसरे को भी बुरा या अटपटा लग सकता है.
-------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

No comments:

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें