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Sunday, December 21, 2008

संत कबीर संदेश:कौवा किसका धन हरता और कोयल देती है

जिभ्या जिन बस में करी, तिन बस कियो जहान
नहिं तो औगुन ऊपजे, कहि सब संत सुजान

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जिन्होंने अपनी जिव्हा पर नियंत्रण कर लिया यह पूरा संसार ही उनका अपना हो गया। एसा करने से तन और मन में कोई विकास उत्पन्न होता है-यह संत लोग कह गये हैं।
कागा काको धन हरै, कोयल काको देत
मीठा शब्द सुनाय के, जग अपनी करि लेत

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अपने मन में यह विचार करें कि कौवा किसके धन का अपहरण करता है या कोयल किसको क्या देती है। कर्कश स्वर के कारण कौवा तिरस्कार झेलता है और कोयल लोगों का सम्मान पाती है।
जिहि शब्दे दुख ना लगे, सोई शब्द उचार
तपत मिटी सीतल भया, सोई शब्द ततसार

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जिन शब्दों से दूसरों को कष्ट न हो उनका ही उच्चारण करो। जिससे दुःखी मनुष्य का संतप्त मन भी प्रसन्न हो जाये ऐसी ही वाणी बोलें।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जीभ पर नियंत्रण से दो आशय होते हैं एक तो बोलने में मीठी वाणी बोलना और दूसरा खाने में स्वाद की सुपाच्य भोजन को ग्रहण करना। यह दोनों बातें बहुत महत्व रखती हैं। देखा जाये तो कई बार हम अपने मुख से निकले शब्दों का परिणाम हम नहीं देख पाते पर वह होता है। कहा जाता है कि यही जीभ आदमी को धूप में बिठाती है और यही छाया में आसरा दिलाती है। कई बार ऐसा होता है कि पीठ पीछे किसी व्यक्ति की निंदा करते हैं और उसे पता लगता है तो वह फिर मुंह फेर लेता है पर हमें पता ही नहीं लगता। कई बार बोलना है इसलिये ऐसे वाक्य बोलते हैं जो दूसरे को विदीर्ण कर देते हैं और बाद में वही व्यक्ति हमारे प्रति नाराजगी का भाव रख लेतेा है। कई घटनायें ऐसी भी देख सकते हैं जब एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति में कभी न कभी काम पड़ना तय है पर वह वार्तालाप में उसकी निंदा कर उसे अपना बैरी बना लेता है।

उसी तरह खाने में नियंत्रण रखना भी जरूरी है। कई ऐसे पदार्थ हैं जिनके भक्षण से जीभ को स्वाद तो अनुभव होता है पर पेट के लिये वह सुपाच्य नहीं होती। आजकल तो बाजार में अनेक ऐसे पदार्थ बिक रहे हैं जो स्वाद में बहुत अच्छे लगते है। इसलिये पेट के विकारों से अधिकतर लोग त्रस्त हैं। बेहतर तो यही है कि जो पेट के लिये सुपाच्य भोजन हो वही ग्रहण करें।
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