समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, December 20, 2008

भृतहरि सन्देश: रोजीरोटी की खोज इन्सान को अपने गुणों से परे कर देती है

हिंसाशून्यमयत्नलभ्यमश्यनं धात्रा मरुत्कल्पितं
व्यालानां पशवस्तृणांकुरभुजस्तुष्टाः स्थलीशायिनः
संसारार्णवलंधनक्षमध्यिां वृत्तिः कृता सां नृणां
तामन्वेषयतां प्रर्याति सततं सर्व समाप्ति गुणाः


हिंदी में भावार्थ- परमात्मा ने सांपों के भोजन के रूप में हवा को बनाया जिसे प्राप्त करने में उनको बगैर हिंसा और विशेष प्रयास किए बिना प्राप्त हो जाती है। पशु के भोजन के लिए घास का सृजन किया और सोने के लिए धरती को बिस्तर बना दिया परंतु जो मनुष्य अपनी बुद्धि और विवेक से मोक्ष प्राप्त कर सकता है उसकी रोजीरोटी ऐसी बनायी जिसकी खोज में उसके सारे गुण व्यर्थ चले जाते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-आधुनिक समय में जितना विकास ने अपना बृहद स्वरूप दिखाया है वहीं विनाश भी उससे कम नहीं है। धन और भौतिक सुविधाओं की अतिउपलब्धता ने आदमी को न केवल शरीर बल्कि मस्तिष्क से भी आलसी बना दिया है। मनुष्य का मन उसे भटकाता है। अगर आदमी महल में है तो मन उसे झौंपड़ी की तरफ आकर्षित करता है और वह झौंपड़ी में है तो महल पाने का ख्वाब देखता है। कहने का तात्पर्य है कि मन असीमित विचारों वाला है और वही मनुष्य को इधर उधर घुमाता और भटकाता भी है। मगर आदमी ने अपने आपको सीमाओं में कैद कर लिया है। न वह केवल वैचारिक रूप से बल्कि शारीरिक रूप से भी कम मेहनत करता हैं।

इंसान बस धन,दौलत और प्रतिष्ठा के संचय में ही लिप्त हो गया है। उसका मन उसे कहंीं निष्काम कर्म या निष्प्रयोजन दया के लिये प्रेरित भी करे तो वह नहीं करता क्योंकि उसक मस्तिष्क की नस नाडि़या अब केवल सीमित दायरे में ही कार्य करती हैं। ऐसे में लोगों का मानसिक तनाव बढ़ रहा है पर जिन लोगों को ज्ञान है वह संतोषी सदा सुखी की नीति पर चलते हुए कुछ ऐसे काम भी करते हैं जिनसे मन को प्रसन्नता हो। संचय करने वालों की हालत यह है कि उन्होंने इतना कमा लिया है कि उनकी सात पीढि़यां भी बैठकर खायें पर वह जीवन में धनार्जन करने के अलावा उन्होंने कुछ सीखा ही नहीं है ऐसे में उनका मन उन्हें भटकाता है न कि घुमाता है। इस तरह उनके जो स्वाभाविक गुण होते हैं वह व्यर्थ हो जाते हैं। न वह अपने जीवन में भगवान की भक्ति कर पाते हैं न ही उनको कोई ज्ञान प्राप्त होता है। अध्ययन,चिंतन,श्रवण और मनन के जो गुण उनमें रहते हैं वह कभी उनका उपयोग नहीं कर पाते

No comments:

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें