सैंजन अति फूलै तऊ, डार पात की हानि
कविवर रहीम कहते हैं कि कभी भी किसी कार्य और व्यवहार में अति न कीजिये। अपनी मर्यादा और सीमा में रहें। इधर उधर कूदने फांदने से कुछ नहीं मिलता बल्कि हानि की आशंका बलवती हो उठती है
यही रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय
बैर प्रीति अभ्यास जस, होत होत ही होय
कविवर रहीम कहते हैं कि प्रीति, अभ्यास और प्रतिष्ठा में धीरे धीरे ही वृद्धि होती है। इनका क्रमिक विकास की अवधि दीर्घ होती है क्योंकि यह सभी आदमी जन्म के साथ नहीं ले आता। इन सभी का स्वरूप आदमी के व्यवहार, साधना और और आचरण के परिणाम के अनुसार उसके सामने आता है।
वर्त्तमान सन्दर्भ में संपादकीय व्याख्या-जीवन में उपलब्धि प्राप्त करने का कोई छोटा या संक्षिप्त मार्ग नहीं होता। दूसरों का वैभव देखकर कुछ लोग अपना संयम खोने लगते हैं और सोचते हैं कि वह तत्काल उनको प्राप्त हो जाए। अनेक लोगों को कड़े संघर्ष करते हुए ही धन और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। तब उनकी आयु भी बड़ी होती हैं पर युवा सोचते हैं कि वैसी ही प्रतिष्ठा और सुख तत्काल छोटे या संक्षिप्त मार्ग से प्राप्त हो जाए। जिन लोगों के माता पिता ही प्रतिष्ठित और धनवान हैं उन युवाओं के लिए यह संभव है पर जो छोटे और गर्गीब परिवारों के हैं उनके लिए तो यह संभव नहीं नहीं होता। अत: उनको संयम रखकर ही आगे बढ़ना चाहिये। संक्षिप्त और छोटे मार्ग के चक्कर में उन्हके जीवन में भटकाव भी आ सकता है।
-----------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
No comments:
Post a Comment