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जो जैसा उनमान का, तैसा तासो बोल
पोता का गाहक नहीं, हीरा गांठि न खोल
जिस तरह का व्यक्ति हो उससे वैसा ही व्यवहार तथा वार्तालाप करो। जो कांच खरीदने वाली भी नहीं है उसके सामने हीरे की गांठ खोलकर दिखाने का फायदा ही नहीं।
एक ही बार परिखए, न वा बारम्बार
चालू तौहू किरकिरी, जो छानै सौ बार
किसी व्यक्ति को उसके कृत्य से एक ही बार परखना चाहिए। बार बार किसी की परखने का कोई फायदा नहीं। बालू की रेत को सौ बार भी छाना जाये तो उसकी किरकिरी नहीं जा सकती।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जीवन में हमारा प्रतिदिन अनेक व्यक्तियों से संपर्क होता है। इनमें कुछ व्यक्ति केवल दिखावे के लिये हितैषी बनते तो कुछ वास्तव में होतेे भी है। हम कई बार अपने संपर्क में आने वाले व्यक्तियों पर अधिक दृष्टिपात नहीं करते पर जिनके स्वार्थ होते हैं वह अपनी पैनी नजरें रखते हैं कि कब हम चूकें और वह अपना हित साधकर नजरों से ओझल हो जायेंं। ऐसा हो सकता है कि कोई व्यक्ति लंबे समय तक साथ हो और हमें लगता है कि वह तो वफादार होगा तो यह भ्रम नहीं पालना चाहिये-क्योंकि कि वह कोई बड़ा स्वार्थ सिद्ध करने के लिये आपके साथ चिपका हो और उसकी पूर्ति के बाद छोड़ जाये। फिर जिन लोगों ने छोटे मोटे अवसरों पर धोखा दिया हो तो उनसे बड़े अवसर पर वफादारी की उम्मीद करना व्यर्थ है। अगर किसी ने एक बार आपका काम न करने पर बहाना बना दिया है तो वह दूसरी बार भी न करने पर कोई बहाना बना देगा। इसलिये सोच समझकर ही लोगों से व्यवहार करना चाहिये। जिस पर विश्वास न हो उसे अपने मन की बात और उद्देश्य नहीं बताना चाहिये
इसी तरह कुछ लोग दिखावे के लिये प्रेम से व्यवहार करते हैं पर वास्तव में उनका हमारे लिये प्रति उनके हृदय में किसी प्रकार का मोह नहीं होता। इसका आभास उनके व्यवहार से लग भी जाता है। साथ ही यह भी लगता है कि उनसे हमारा संपर्क अधिक नहीं चलेगा फिर भी उनके साथ संबंध बनाने की चेष्ट हम लोग करते हैं और यह जानते हुए भी कि वह व्यर्थ हो जायेगी। सच तो यह है कि जिनसे संपर्क अधिक चलने की न आशा है और भविष्य में किसी अवसर पर सहायता न मिलने की आशा है उनके सामने अपने दिल का हाल बयान करने का कोई लाभ नहीं हैं।
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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