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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, October 29, 2014

सात्विक जीवन जीना भी तप है-मनुस्मृति के आधार पर चिंत्तन लेख(satwik jeevan jeena bhee tap hai-A hindu hindi religion thought based on manusmriti)




            हमारे देश में श्रीमद्भागवत गीता जैसे पवित्र ग्रंथ भी है जो जीवन जीने की कला सिखाता है पर आश्चर्य इस बात का है कि धर्म के कथित ज्ञाता उसी के ज्ञान के नाम पर भारी भ्रम फैलाते हैं।  श्रीमद्भागवत गीता में गुरु की सेवा करने की बात कही गयी है यह उचित भी है। यह अलग बात है कि श्रीमद्भागवत गीता में तत्वज्ञान देने वालों को ही गुरु मानने का संकेत दिया गया है।  दैहिक गुरु न होने पर श्रीगीता का अध्ययन करने पर भी जीवन सुख मिलने की प्रेरणा भी दी गयी है। यह अलग बात है कि श्रीमद्भागवत गीता में गुरु सेवा के संदेश की आड़ में अनेक पाखंडी अपने पांव छुआकर लोगों को स्वर्ग दिलाने का आश्वासन देते हैं। हमारे अध्यात्मिक दर्शन में पवित्र ग्रंथों के अध्ययन को भी तप माना गया है।  उनके शब्दों को ही गुरु रूप भी कहा गया है।

मनुस्मृति में कहा गया है कि
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वेदमेव सदाभ्यस्येत्तपस्तप्स्यन् द्विजोनामः।
वेदाभ्यासो हि विप्रस्य तपः परमिहोच्यते।।
            हिन्दी में भावार्थ-संसार में वेदों की शिक्षानुसार अपने जीवन को व्यतीत करने से बड़ा कोई तप नहीं है, यदि कोई मनुष्य वास्तव में तप करना चाहता है तो उसे वेदों का अध्ययन करना चाहिये।

            तप के नाम पर द्रव्यमय हवन और यज्ञों को ही प्रचारित किया जाता है ताकि उससे धर्म से चलने वाले व्यापार में आथ्रिक लाभ हो।  श्रीमद्भागवत गीता में प्राणायाम को भी यज्ञ कहा गया है। योग साधना में अपनी ही देह में उत्पन्न ऊर्जा से हवन करने पर अमृत की अनुभूति का अनुभव वाले साधक को भी एक तपस्वी माना गया है। जबकि देखा यह गया है कि द्रव्यमय यज्ञ में खीर या अन्य खाद्य पदार्थ को प्रसाद को अमृत कहकर खाने के लिये लोग तत्पर रहते हैं। अमृत का केवल भौतिक स्वरूप मानने वाले ज्ञानी नहीं हो सकते यह बात तय है। अमृत का आशय है कि सुखानुभूति से भी है यह बात ज्ञान साधक जानते हैं।  श्रीमद्भागवत गीता में द्रव्यमय यज्ञ से ज्ञानमय यज्ञ श्रेष्ठ माना जाता है। ज्ञानमय यज्ञ से पैदा अमृत मुख से नहीं वरन् आज्ञा चक्र से ग्रहण किया जाता है।
            हमारे यहां अनेक ऐसे महापुरुष ऐसे हुए हैं जिन्हें दैहिक गुरु की बजाय परमात्मा या फिर पवित्र ग्रंथों को अपना गुरु बनाकर तप किया और समाज को एक नयी दिशा दी। उनसे प्रेरणा लेकर  कभी भी दैहिक गुरु न मिलने से निराश होकर बैठने की बजाय पवित्र ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिये।


दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Wednesday, October 22, 2014

श्रमिक तथा बुद्धिजीवियों का संरक्षण करने पर ही सामाजिक समरसता संभव-दिवाली पर विशेष हिन्दी चिंत्तन लेख(shramik tathaa buddhijiviyon ka sanrakshan karne par hi samajik samrasata sambhav-spechial hindu article on diwali or dipawali festival)



            गुजरात के एक प्रसिद्ध  हीरा व्यापारी ने अपनी कंपनी के  1200 कर्मचारियों को-जिन्हें वह  हीरा अभियन्ता या इंजीनियर कहते हैं-दीपावली के अवसर पर बोनस में कार तथा फ्लेट देने की घोषणा कर पूरे देश के धनपतियों के लिये आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है। वैसे गुजरात के बारे में हमारा मानना यह है कि वहां के लोग धन और धर्म में समान दिलचस्पी रखते हैं।  सांस्कृतिक रूप से भी उनकी गतिविधियां अत्यंत रुचिकर हैं।  बहुत समय पहले गुजरात के ही एक धनी सेठ ने अपना सब कुछ दान कर सन्यास अपना लिया था। भारतीय अध्यात्मिक दर्शन को संपन्न बनाने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने भी अपना निवास गुजरात में ही  द्वारका में बनाया। महाभारत युद्ध के समय उन्होंने  कुरुक्षेत्र में आकर श्रीमद्भागवत गीता में महान संदेश दिया जो आज उतना ही प्रासांगिक है जितना उस समय था, जब दिया गया। माया और सत्य के बीच जीवन में वही इंसान सामंजस्य बनाकर चल सकता है जो श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञाता हो।
            श्रीकृष्ण भगवान ने कहा है कि अकुशल श्रम को कभी हेय नहीं समझना चाहिये। इसका भावनात्मक अर्थ यही है कि कोई अपनी रोटी रोटी कमाने के लिये छोट या बड़ा काम करता है तो उसका आंकलन इस आधार पर नहीं करना चाहिये कि वह कितना कमा रहा है? वरन् हर व्यक्ति के आचरण, व्यवहार तथा विचार के आधार पर उसकी योग्यता का आंकलन करना चाहिये।  हमारे देश में श्रमजीवियों का शोषण करने के साथ ही उनको अपमानित करने की प्रवृत्ति देखी जाती है।  उससे भी ज्यादा बुरा यह कि यह माना जाता है कि उनमें ईमानदारी तो हो ही नहीं सकती। हमारे समाज में अर्थ के आधार पर हमेशा ही विषम हालात रहे हैं। यही कारण है कि हमारे अध्यात्मिक ग्रंथ हमेशा निष्प्रयोजन दया का संदेश सामाजिक समरसता बनाने रखने का प्रयास करते रहे हैं। सामाजिक समरसता बनाने के लिये श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने वेदों का सार प्रस्तुत कर अपना संदेश स्थापित किया।
            भारत में आर्थिक द्वंद्व के इतना रहा कि विदेशियों के लिये यहां फूट डालकर आसान रहा है। एक तरफ धनी लोग अपने अहंकार में सामाजिक कार्यक्रमों में अपने धन का प्रदर्शन करते रहे तो दूसरी तरह अल्प धनी और श्रमिक मन ही मन कुड़ते रहे। यही कारण है कि विदेशी आक्रांताओं ने यहीं के लोगों को सपने दिखाकर अपनी तरफ किया और देश को लूटते रहे।  मोहम्मद गौरी ने तो सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण ढेर सारी दौलत लूटी जो गुजरात में ही था।  हम यह कहते हैं कि मुगल और अंग्रेजों ने हम पर शासन किया पर आज तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि दोनों के समय पुलिस तथा सेना में उनके स्वयं के देश में जन्मे लोग  थे या भारतीय ही उनकी सेवा कर रहे थे। हमारा मानना है कि नाम विदेशी शासकों का भले ही रहा हो पर वास्तव में कहीं न कहीं भारत के अंसतुष्ट वर्ग ने ही उनकी सत्ता बनाये रखने में सहायता की और लाभ उठाने वाला मध्यस्थ भी यहीं का बुद्धिजीवी वर्ग  रहा था।
            कहने का अभिप्राय यह है कि अगर हम चाहते हैं कि हमारे धर्म, संस्कृति तथा क्षेत्र की एकता तभी बनी रह सकती है जब धनिक वर्ग उदार रवैया अपनायेगा। वह अपने साथ कम करने वाले श्रमिक तथा बुद्धिजीवी वर्ग को वैसी ही भौतिक सुविधायें स्वयं उपलब्ध कराकर ही सामाजिक समरसता का वातावरण बनाये रह सकता है।  इसी से उसकी संपत्ति, व्यवसाय तथा परिवार की भी रक्षा हो सकती है। जिस तरह विश्व में मुद्रा ने बृहद रूप धारण कर लिया उसमें अब यह संभव नहीं है उसमें से थोड़ा श्रमिक या बुद्धिजीवी कर्मी को दे दिया और वह प्रसन्न होकर चला गया।  ऐसे में बृहर उपहार देना ही चाहिये।  इस दीपावली पर देश के धनिक वर्ग को आत्ममंथन करना चाहिये। अपना काम बनता भाड़ में जाये जनताका सिद्धांत चलना अब संभव नहीं।
            इस दीपावली पर सभी ब्लॉग लेखक मित्रों, पाठकों तथा शुभचिंत्तकों को हार्दिक बधाई।
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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Thursday, October 09, 2014

हम अमृतसर की यात्रा पर निकलने वाले हैं(my tour for amritsar)


कल से 14 अक्टूबर तक अपना अमृतसर दौरा प्रस्तावित है।  यह पहला अवसर है कि जब अपनी यात्रा की चर्चा अंतर्जार पर कर रहे हैं। इस तरह फेसबुक पर सूचना देते हुए थोड़ा संकोच हो रहा है।  वैसे तो फेसबुक, ब्लॉग और ट्विटर पर एक आभासी दुनियां है जिसकी सत्यता पर विश्वास करना कठिन है।  इस अंतर्जाल पर एक भी ऐसा मित्र नहीं है जो इस लेखक से मिलने को उत्सुक हो।  अमृतसर से कुछ फेसबुकिया मित्र हैं पर उनका नाम पता 635 लोगों की सूची में ढूंढना कठिन है। फिर प्रश्न है कि हमसे कौन मिलना चाहेगा?  अमृतसर में स्वर्ण मंदिर, जलियांवाला बाग तथा कुछ प्रतिष्ठत स्थान हम देखने जायेंगे। कुछ लोग कह रहे हैं कि सीमावर्ती इलाका भी देख आना।  जिस तरह जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान गोलीाबारी कर रहा है उससे सीमावर्ती इलाका शब्द सुनते ही शरीर में सिहरन दौड़ जाती है।
      हालांकि यह गोलीबारी सामान्यतः होती रहती है पर इस बार इसके बड़े युद्ध बदल जाने की आशंकायें लग रही है। रक्षा विशेषज्ञ इससे इंकार कर रहे हैं।  कहा जाता है कि कश्मीर मुद्दा ही पाकिस्तान में सेना को सम्माजनक स्थान दिलाता है इसलिये वह गाहेबगाहे यहां अपने कारनामे करती रहती है।  इस बार वह अधिक ही सक्रिय हुई है। इसका कारण यह भी लगता है कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संध में स्पष्ट रूप से कह दिया कि यह द्विपक्षीय विषय है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाने से कोई लाभ नहीं है।  ऐसा पहली बार हुआ है कि अंतर्राष्ट्रीय संस्था में ही पाकिस्तान के मुद्दे को तो   नकारा गया साथ ही  संयुक्त राष्ट्र संघ के अस्तित्व और महत्व को भी अनेक बातें कहकर चुनौती दी गयी।  जबकि पाकिस्तान इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बनाये रखना चाहता है।  अगर वह ऐसा नहीं करेगा तो मामला गौण हो जायेगा और पाकिस्तानी सेना जो इसकी आड़ में लोकतांित्रक ढांचे को सामने रखकर अभी तक जो शासन चलाती रही है अपना अस्तित्व खो बैठेगी।
      पाकिस्तान की सेना के पीछे भारत के छद्म मित्र देश भी हो सकते हैं जिन्हें प्रधानमंत्री श्री मोदी का संयुक्त राष्ट्र संघ के महत्व सीमित रह जाने के कारण उसे विस्तृत रूप देने की सलाह  देना भी अखरा हो।  जिस संयुक्त राष्ट्रसंघ को कश्मीर मामले में माई बाप मान रहा हो उसे ही भारत चुनौती दे रहा है तो इस बात की आश्ंाका पैदा होती ही है कि ऐसी हरकत के पीछे किसी दूसरे देश का इशारा भी हो सकता है।  विश्व के शक्तिशाली देशों ने अभी तक संयुक्त राष्ट्र संघ की आड़ में मानमानी की है जिससे भारत में नाराजगी रहती है और अब  पाकिस्तान के रणनीतिकारों को यह बात समझनी होगी कि भारत से टकराव में अंततः हानि उसी की होनी है।
      इधर उड़ीसा में तूफानी आने की सूचनायें भी मिल रही हैं।  ऐसा लगता है कि अमृतसर की यात्रा से हम जब लौटेंगे तो मौसम में कुछ ठंडक आ जायेगी।  अभी दोपहर की गर्मी पसीना निकाल देती है।  अमृतसर में जो देखेंगे उस पर अपना कोई लेख जरूर लिखेंगे।

Saturday, October 04, 2014

पतंजलि योग साहित्य के आधार पर चिंत्तन-नया विषय सामने आने पर विवेक संयम योग करें(naya vishay samane ane par vivek sanyam yog karen-A hindu hindi thohght article on patanjali yog sahitya)



            यह मानवीय स्वभाव है कि जब वह अपने सामने किसी दृश्य, व्यक्ति या वस्तु को देखता है तो उस पर अपनी तत्काल प्रतिक्रिया देने या राय कायम करने को तत्पर हो जाता है। इस उतावली में अनेक बार मनुष्य के मन, बुद्धि तथा विचारों में भ्रम तथा तनाव के उत्पन्न होता है।  इस तरह की प्रतिक्रिया अनेक बार कष्टकर होती है और बाद में उसका पछतावा भी होता है।
            वर्तमान समय में हमारे यहां युवा वर्ग में जिस तरह रोजगार, शिक्षा तथा कला के क्षेत्र में शीघ्र सफलता प्राप्त करने के लिये सामूहिक प्रेरणा अभियान चल रहा है उसमें धीरज से सोचकर काम करने की कला का कोई स्थान ही नहीं है।  लोग अनेक तरह के सपने तो देखते हैं पर उन्हें पूरा करने की उनको उतावली भी रहती है। यही कारण है कि सामान्य लोगों में  धीरज रखने की प्रवृत्ति करीब करीब समाप्त ही हो गयी है।  जिस कारण नाकामी मिलने पर अनेक लोग भारी कष्ट के कारण मानसिक संताप भोगते हैं।

पतंजलि योग में कहा गया है कि
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क्षणत्तक्रमयोः संयमाद्विवेकजं ज्ञानम्।
            हिन्दी में भावार्थ-क्षण क्षण के क्रम से संयम करने पर विवेकजनित ज्ञान उत्पन्न होता है।

जातिलक्षणदेशैरन्यतानवच्छेदात्तुल्ययोस्ततः प्रतिपत्तिः।
            हिन्दी में भावार्थ-जिन विषयों का जाति, लक्षण और क्षेत्र का भेद नहीं किया जा सकता उस समय जो दो वस्तुऐं एक समान प्रतीत होती हैं उनकी पहचान विवेक ज्ञान से की जा सकती है।

            प्रकृति ने मनुष्य और पशुओं के बीच अंतर केवल विवेक शक्ति का ही रखा है।  मन, बुद्धि तथा अहंकार तो पशुओं में भी पाये जाते हैं पर अपने से संबद्ध विषय की भिन्नता, उनके  लक्षण तथा  उपयोग करने की इच्छा का निर्धारण करने की क्षमता केवल मनुष्य में ही है।  इसके लिये आवश्यक है कि जब मनुष्य के सामने कोई वस्तु, विषय या व्यक्ति दृश्यमान होता है तब उस पर संयम के साथ हर क्षण दृष्टि जमाये रखना चाहिये। यह क्रिया तब तक करना चाहिये जब तक यह तय न हो जाये कि उस दृष्यमान विषय की प्रकृत्ति, लक्षण तथा उससे संपर्क रखने का परिणाम किस तरह का हो सकता है?
            इसे हम विवेक संयम योग भी कह सकते हैं।  ऐसा अनेक बार होता है कि हमाने सामने दृश्यमान विषय के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती।  एक साथ दो विषय समान होने पर यह निर्णय लेना कठिन हो जाता है कि उनकी प्रकृति समान है या नहीं! अनेक अवसर पर किसी भी विषय, वस्तु तथा व्यक्ति की मूल प्रंकृत्ति, रूप तथा भाव को छिपाकर उसे हमारे सामने इस तरह प्रस्तुत किया जाता है कि वह हमें अनुकूल लगे जबकि वह भविष्य में उसके हमारे प्रतिकूल होने की आशंका होती है।
            इनसे बचने का एक ही उपाय है कि हमारे सामने जब कोई नया विषय, वस्तु या व्यक्ति आता है तो पहले उस पर बाह्य दृष्टि के साथ ही अंतदृष्टि भी लंबे क्षणों तक केंद्रित करें।  प्रतिक्रिया देने से पहले निरंतर हर क्षण संयम के साथ उस पर विचार करें। धीमे धीमे हमारा विवेक ज्ञान जाग्रत होता है  जिससे दृश्यमान विषय के बारे में वह ज्ञान स्वाभाविक रूप से  होने लगता है जो उसके पीछे छिपा रहता है। इस हर क्षण संयम रखने की प्रक्रिया को हम विवेक योग भी कह सकते हैं।     

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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