रहिमन अब वे बिरछ कहं जिनकी छांह गंभीर
बागन बिच बिच देखिअत, सेंहुड, कुंज करीर
कवीवर रहीम कहते हैं की अब इस संसार रुपी बाग़ में अब वह वृक्ष कहाँ है जो घनी छाया देते हैं। अब तो इस बगीचे में सेमल और घास फूस के ढेर या करील के वृक्ष ही दिखाई देते हैं।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-हम कहते हैं कि ज़माना बहुत खराब हैं पर देखें तो यह केवल हमारा एक नजरिया है। इस कलियुग में तो झूठे और लघु चरित्र के लोगों का बोलबाला है। रहीम जी के समय तो फिर भी सात्विक भाव कुछ अधिक रहा होगा पर अब तो स्थिति बदतर है।
पहले तो लोग दान -पुण्यके द्वारा समाज के गरीब तबके पर दया करते थे और अन्य भी तमाम तरह की समाज सेवा करते थे। आपने देखा होगा कि अनेक धर्म स्थलों पर तीर्थ यात्रियों के लिए धर्मशालाएं बनीं हैं जो अनेक तरह के दानी सेठों और साहूकारों ने बनवाईं पर आज उन जगहों पर फाईव स्टारहोटल बन गए हैं। कहने का तात्पर्य अब वह लोग नहीं है जो समाज को अपने पैसे, पद और प्रतिष्ठा से छाया देते थे। अगर कुछ लोग दानवीर या दयालू बनने का दिखावा करते हैं तो उनके निज स्वार्थ होते हैं। ऐसे लोगों से सतर्क रहने की जरूरत है।
मूल बात यह है कि इस समय भारत में ही नहीं वरन् विश्व में अमीर और गरीब के बीच धन की उपलब्धता को लेकर खाई बढ़ रही है। सभी जगह गरीबों की स्थिति दिन ब दिन खराब होती जा रही है पर हमारा भारत देश जो कि दान और सत्संग की द्वारा समाज में सामाजिक समन्वय स्थापित करने के लिये जाना जाता था वहां भी लोग पाश्चात्य संस्कृति की राह पर चल पड़े हैं और यह मान लिया गया है कि गरीब और कमजोर का कल्याण करना सरकार का ही काम है। इस भावना से मुक्त होना होगा।
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कवीवर रहीम कहते हैं की अब इस संसार रुपी बाग़ में अब वह वृक्ष कहाँ है जो घनी छाया देते हैं। अब तो इस बगीचे में सेमल और घास फूस के ढेर या करील के वृक्ष ही दिखाई देते हैं।
"सत्य वचन "
Regards
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