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Sunday, December 14, 2008

संत कबीर सन्देश: पढ़लिख कर भी ज्ञानी नहीं बने तो क्या लाभ

पढ़ते गुनते जनम गया, आसा लागी हेत
बोया बीजहिं कुमतिन, गया जू निर्मल खेत


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि पढ़ते-लिखते जीवन व्यर्थ चला गया और हमेशा ही इच्छाओं और आशाओं के दास बने रहे। अपने अंदर कुमति का बीज बोया और इससे जीवन का पूरा खेत ही नष्ट हो गया।

चतुराई पोपट पढ़ी, पडि़ सो पिंजर मांहि
फिर परमोधे और को, आपन समुझै नांहि


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि तोते तो दुनियां भर की चतुराई सीख लेता है पर उससे क्या फायदा जो पिंजरे में ही पड़ा रहता है। वह दूसरों को तो उपदेश देता है पर स्वयं कुछ नहीं समझता।

संक्षिप्त संपादकीय व्याख्या-लोग पढ़लिख कर अपने को ज्ञानी समझते हैं पर वह भक्ति और जीवन के ज्ञान से परे होते हैं। वह किताबों से पढ़े हुए ज्ञान का प्रचार करते हुए लोगों को मोह माया से दूर रहने का उपदेश देते हैं पर वह स्वयं जीवन के बंधनों में पड़े हुए हैं। तनाव जीवन में अनेक बीमारियों का कारण है आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने वाले सभी लोग जानते हैं पर भला कोई उससे मुक्त हो पाया। यह जीवन माया है और चिंता करने का कोई कारण नहीं है पर क्या लोग उसे छोड़ पाते हैं। जिन्होंने आधुनिक शिक्षा प्राप्त की है वह और अधिक दिखावे के मोह में स्वयं को फंसा देते हैं। वह कहते हैं कि हम आधुनिक हैं पर उनका आचरण फिर भी पुरानी रुढि़यों और कुप्रथाओं से स्वतंत्र नहीं दिखता। भारत में दहेज प्रथा इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। जितना अधिक शिक्षित दूल्हा उतना ही अधिक दहेज मांग जाता है। देश में इतनी शिक्षा बढ़ गयी है पर फिर भी पुरानी कुप्रथाओं और रूढि़यों को लोग छोड़ने के लिये तैयार नहीं हैं। ऐसे मेंे लगता है कि इस शिक्षा का कोई लाभ नहीं है। कबीरदास जी सहित अनेक अपढ़ संतों ने अपने तपस्या से जो ज्ञान अर्जित किया और उसे सारे संसार को दिया। उन्होंने ऐसी कुरीतियों और कुप्रथाओं के साथ भक्ति के नाम पर ढोंग का जमकर विरोध किया पर आधुनिक शिक्षा में उनके संदेशों को पढ़कर बड़ी बड़ी उपाधियां लेने वाले फिर भी अपने अंदर सुधार नहीं लाते।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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