बिन स्वारथ आदर करै, सो नर चतुर सुजान
संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार में स्वार्थ के कारण ही सब सगे बनते हैं, पर चतुर और बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो बिना स्वार्थ के ही सभी को आदर देते हैं।
स्वारथ कूं स्वारथ मिले, पडि़ पडि़ लूंबा बूंब
निस्प्रेही निरधार को, कोय न राखै झूंब
संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार में सभी लोग अपने स्वार्थ के कारण एक दूसरे से मिलते हैं और एक दूसरे की झूठी प्रशंसा करते हैं। जो मनुष्य इस बुराई से दूर रहते हुए बिना किसी प्रेरणा के स्वार्थ रहित व्यवहार करते हैं उनका कोई भी सम्मान नहीं करता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-यह इस संसार की विचित्र लीला है कि जो निष्काम भाव से दूसरों का कार्य करते हैं उनका कोई सम्मान भी नहीं करता। इसका कारण यह है कि वह किसी की चाटुकारिता नहीं करते। फिर लोग यह सोचते हैं कि यह तो हमारा काम वैसे ही करेगा फिर इसका सम्मान क्यों करें? यह तो दुनियां का काम करता है।
समाज ऐसे लोगों को ही सम्मान देता है जो स्वार्थी हो। जो अपना कार्य होने पर ही दूसरे का कार्य करता हो। तब लोग सोचते हैं कि इसका काम कर देना चाहिये ताकि कभी अपना काम करे तो वह उसको कर दे। इसी कारण लोग उस आदमी को सम्मान देते हैं जिससे समय पड़ने पर स्वार्थ सिद्ध हो क्योंकि ऐसा करने पर ही उससे कोई आशा रहती है।
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1 comment:
unka koi mukabala nai kar sakta. narayan narayan
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