समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, December 29, 2012

विदुर नीति-छह दोष आदमी को सौ वर्ष से पहले मारते हैं (vidur neeti-chhah dosh aadmi ko sau varsh se pahle maarte hain)

           भारतीय दर्शन के अनुसर प्रकृति आधार पर  मनुष्य की आयु सौ वर्ष निर्धारित है।  ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि आखिर मनुष्य अपनी आयु पूरी क्यों नहीं कर पाता? इसका उत्तर यह है कि जिस बुद्धि की वजह से मनुष्य प्रकृत्ति के अन्य जीवों से अधिक विकसित माना जाता है वही उसकी शत्रु भी बन जाती है।  मनुष्य अपनी बुद्धि और मन को स्वच्छ रखने का कोई उपाय नहीं करता बल्कि संसार के उन लुभावने विषयों में पूरी तरह से लिप्त हो जाता है जो कालांतर में उसके अंदर मानसिक तथा दैहिक दोष उत्पन्न करते हैं।
     महाराज धृतराष्ट्र ने महात्मा विदुर से प्रश्न किया कि ‘‘जब परमात्मा ने मनुष्य की आयु कम से कम सौ वर्ष निर्धारित की है तो वह कम आयु में क्यों देह त्यागने को बाध्य होता है?’’
इसके उत्तर में महात्मा विदुर ने कहा कि
------------------------
अतिमानोऽतिवादश्च तथात्यागो नराधिप।
क्रोधश्चात्मविधित्सवा च मित्रद्रोहश्च तानि षट्।।
एत एवासयस्तीक्ष्णः कृन्तन्त्यायूँषि देहिनाम्।
एतानि मानवान् धनन्ति न मृत्युर्भद्रमस्तृ।।
           हिन्दी में भावार्थ-अत्यंत अहंकार, अधिक बोलना, त्याग न करना, क्रोध करना, केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति की चिंता में रहना तथा मित्रों से द्रोह करना यह छह दुर्गुण मनुष्य की आयु का क्षरण करते हैं। दुर्गुण वाले मनुष्य का मृत्यु नहीं बल्कि अपने कर्मो के परिणाम ही मारते हैं।
      आदमी की सौ वर्ष से पहले मृत्यु हो जाने पर अनेक लोग यह सवाल करते हैं कि आखिर मनुष्य अपनी आयु क्यों होती है? दरअसल उसका मुख्य कारण यह है कि मनुष्य उपभोग में इतना व्यस्त रहता है कि उसे लगता ही नहीं कि यह संसार कभी वह छोड़ेगा, इसलिये वह शारीरिक और मानसिक विकार एकत्रित करता रहता है।  अगर हम देखें तो प्राचीन काल में लोग अधिक समय तक जीवित रहते थे।  आज भी ग्रामीण क्षेत्र में श्रम करने वाले अनेक लोग शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक आयु तक जीवित रहते हैं।  शहरी क्षेत्रों में जहां आधुनिक आदमी सुविधाभोगी दुषित वातावरण में सांस ले रहा समाज रोगों का प्राप्त होता है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में मेहनतकश लोग स्वच्छ हवा में सांस लेकर उन राजरोगों से दूर रहते हैं।  शहरी क्षेतों में तो अब साठ  साल तक आदमी शारीरिक दृष्टि  से लाचारी की स्थिति में आ जाता है, जबकि अभी भी  गाँवों  में मेहनत  की वजह से लोग हष्ट पुष्ट दिखते  हैं। इसके अलावा शहरों में धन संपदा की वृद्धि ने लोगों के अंदर अहंकार, गद्दारी तथा अधिक बोलने की ऐसी बीमारियां भर दी हैं जो अंततः आयु का क्षरण करती हैं।
         महात्मा विदुर एक महान विद्वान थे।  सच्चा विद्वान वह है जो जीवन के रहस्यों को जानता हो। इसलिये हमें उनके वचनों का अध्ययन कर जीवन बिताने का प्रयास करना चाहिए।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

No comments:

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें