जीवन में सुख पाने का सीधा मार्ग यही है कि दूसरे को प्रसन्नता प्रदान करो। यह सिद्धांत न केवल मनुष्य बल्कि पशु पक्षियों के प्रति भी अपनाया जाना चाहिये। एक बात याद रखें कि मनुष्यों के अलावा भी अन्य जीवों में वैसी ही आत्मा होती है। मनुष्य बोल सकता है पर अन्य जीव मूक भाव से हमारी तरफ देखते हैं। कहा जाता है कि भोजन, काम, तथा अन्य संवेदनशील प्रवृत्तियाँ पशु पक्षियों में भी होती है। जिस तरह सताये जाने पर मनुष्य का मन रंज होता है वैसे ही पशु पक्षियों में निराशा, कातरता तथा क्रोध के भाव आते हैं। सताये जाने पर वह आर्त भाव से मनुष्य की तरफ देखते हैं। इसलिये मनुष्य को न केवल मनुष्य बल्कि पशु पक्षियों के प्रति भी अहिंसक भाव रखना चाहिए।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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ये बन्धन्वधक्लेशान्प्राणिनां न विकीर्शति।
स सर्वस्य हितप्रेप्सुः सुखामत्यन्तमश्नुते।।
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ये बन्धन्वधक्लेशान्प्राणिनां न विकीर्शति।
स सर्वस्य हितप्रेप्सुः सुखामत्यन्तमश्नुते।।
हिन्दी में भावार्थ- जो व्यक्ति दूसरे जीव को बांध कर नहीं रखता और न उसका वध करता है और नही किसी प्रकार की पीड़ा देता है वह सदा सुखी रहता है।
यद्ध्यायति यत्कुकते धृर्ति वध्नाति यत्र च।
तद्वाप्नोत्यत्नेन या हिनस्ति न किञ्चन।।
तद्वाप्नोत्यत्नेन या हिनस्ति न किञ्चन।।
हिन्दी में भावार्थ-जो व्यक्ति अहिंसा धर्म में स्थित है वह जिस विषय पर चिंत्तन करता है उसमें सफलता प्राप्त कर लेता है। अहिसा भाव के कारण वह अपना ध्यान अपने कर्म में एकाग्रता से लगाता है इसलिये बिना विशेष प्रयास के लक्ष्य प्राप्त कर लेता है।
जब कोई मनुष्य अपने हृदय में शुद्ध भाव धारण कर लेता है तब उसकी अध्यात्मिक शक्ति स्वतः बढ़ जाती है। उसका ध्यान अपने कर्म पर इतनी एकाग्रता से लगता है कि उसका लक्ष्य उसे बिना किसी विशेष प्रयास और किसी अन्य की सहायता लिये बिना प्राप्त हो जाता है। इस संसार में ध्यान की शक्ति अत्यंत महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि चिड़िया अपने बच्चों को अपनी ध्यान शक्ति से ही पालती है। अहिंसा के भाव में स्थित मनुष्य के मस्तिष्क में अच्छे सत्विचारों का केंद्र बिन्दु बन जाता है जिससे उसके अंदर नये नये कार्य करने के साथ ही समाज के लिये भी कुछ कर गुजरने का माद्दा पैदा होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि यह संसार हमारे संकल्प से बनता है और इसलिये ऐसे विषयों से संपर्क रखना ही श्रेयस्कर होगा जिनसे हमारी ध्यान शक्ति प्रबल हो। यदि ध्यान भटकाने वाले विषयों से संपर्क कोई व्यक्ति बढ़ायेगा तो वह न केवल अपने कार्य में नाकाम होगा बल्कि समाज में निंदा का पात्र भी बनेगा।
जब कोई मनुष्य अपने हृदय में शुद्ध भाव धारण कर लेता है तब उसकी अध्यात्मिक शक्ति स्वतः बढ़ जाती है। उसका ध्यान अपने कर्म पर इतनी एकाग्रता से लगता है कि उसका लक्ष्य उसे बिना किसी विशेष प्रयास और किसी अन्य की सहायता लिये बिना प्राप्त हो जाता है। इस संसार में ध्यान की शक्ति अत्यंत महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि चिड़िया अपने बच्चों को अपनी ध्यान शक्ति से ही पालती है। अहिंसा के भाव में स्थित मनुष्य के मस्तिष्क में अच्छे सत्विचारों का केंद्र बिन्दु बन जाता है जिससे उसके अंदर नये नये कार्य करने के साथ ही समाज के लिये भी कुछ कर गुजरने का माद्दा पैदा होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि यह संसार हमारे संकल्प से बनता है और इसलिये ऐसे विषयों से संपर्क रखना ही श्रेयस्कर होगा जिनसे हमारी ध्यान शक्ति प्रबल हो। यदि ध्यान भटकाने वाले विषयों से संपर्क कोई व्यक्ति बढ़ायेगा तो वह न केवल अपने कार्य में नाकाम होगा बल्कि समाज में निंदा का पात्र भी बनेगा।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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