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Friday, June 24, 2011

दिखावटी मित्र का त्याग करना ही श्रेयसस्कर-संत कबीर वाणी (dikhavati mitra ka tyag karna hee theek-sant kabir vani)

          आमतौर अपनी संगत और मित्रता को लेकर अधिक चिंतित नहीं होते और सतर्कता के अभाव में अंततः उनको उसका बुरा परिणाम भोगना पड़ता है। जब कोई आदमी अपने दिल की बातें, नियमित गतिविधियां तथा परिवार की स्थिति के बारे में किसी ऐसे मित्र से चर्चा करता है जो उसका हितैषी नहीं है तो वह सभी को वह बातें बता देता है। लोग यह जानते हुए भी कि उनका मित्र कोई अधिक विश्वसनीय नहीं है उसे अपनी बातें यह सोचकर बता देते हैं कि उससे कोई हानि होने की संभावना नहीं है। यह भ्रम टूटता है जब दूसरे लोगों का वह बातें पता चलती हैं और उसका सभी फायदा उठाते हुए ताने देते हैं या बदनाम करते है। कभी कभी निजी बात दूसरे को जानकारी मिलने से हानि भी होती है और तब पता चलता है कि हमने अपनी बात अपने मित्र को व्यर्थ बताई।
चित कपटी सबसों मिलै, मांहि कुटिल कठोंर।
इक दुरजन इक आरसी, आगे पीछे ओर।।
         ‘‘हृदय में कपट रखने वाला सबसे मधुर व्यवहार करता है। उसका प्रेम केवल दिखावा होता है एक दुष्ट और दर्पण के गुण एक समान होते है। आगे से सफेद पीछे से काले होते हैं।’’
हिये कतरी जीभ रस, मुख बोलन का रंग।
आगे भल पीछे बुरा, ताको तजिये संग।
       "जिसके हृदय में कपट और कलुषिता है पर बातें रस भरी हैं तथा जो केवल सामने अच्छी बात करता है जबकि पीठ पीछे बुराई में लिप्त होता है ऐसे मित्र का त्याग कर देना श्रेयस्कर है।"
       सच बात तो यह है कि लोग आजकल दिखावा बहुत करते हैं। फिर संयुक्त परिवारों की परंपरा का पतन तथा रोजगार की स्थितियो में परिवर्तन ने लोगों को अकेला कर दिया है। इसलिये किसी का साथ पाने की आशा इस उद्देश्य से करते हैं कि शायद वह मित्रता का व्यवहार निभाये। मजे की बात यह है कि लोग स्वयं इस बात का विचार नहीं करते कि वह स्वयं कितना व्यवहार निभा सकते हैं। अकेलेपन से ऊबे लोग दूसरे व्यक्तियों की बातों में आकर उसे अपना मानते हैं। हमेशा यह गलती बुरी साबित न हो पर इसकी संभावना हमेशा रहती है कि मित्र कब धोखा दे। इसलिये मित्रता के रूप में अपने संपर्क बढ़ाने से पहले मित्र के स्वभाव तथा रहन सहन के साथ ही उसकी वैचारिक शुद्धता को अवश्य प्रमाणित कर लेना चाहिए।
संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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