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Tuesday, June 14, 2011

भर्तृहरि नीति शतक से संदेश-मनुष्य अपना जीवन भोजन में ही गुजार देता है

        इस संसार में माया और सत्य का संयोग और संघर्ष सदैव चलता रहा है। ईमानदार, परिश्रमी और संयमी लोगों की सक्रियता कम  होती है जिस कारण उनके पास अकूत धन संपदा नहीं होती जबकि भ्रष्ट और बेईमान लोगों की सक्रियता अधिक होने से उनका वैभव चारों तरफ फैला दिखता है। कभी कभी तो ऐसा ऐसा अनुभव होता है कि जैसे पूरा समाज ही बेईमान है। यह बात नहीं है क्योंकि हम अगर आंखें खुली रखकर अपने मस्तिष्क के चिंतन को व्यापक दृष्टिकोण से देखें तो आज भी मेहतनकश तथा गरीब लोगों की संख्या अधिक है। अनुचित ढंग  की कमाई से लोगों ने ऊंची इमारतें बना लीं और अपनी असलियत छिपाने के लिये समाज सेवा का चोगा ओढ़कर वह प्रचार में अपने विज्ञापनों के कारण प्रसिद्ध भी हो रहे हैं पर जहां पर आत्मिक सुख की बात आती है तो वह केवल सत्य पथ पर चलने वाले लोगों के भाग्य में ही आता है।
         भर्तृहरि महाराज कहते हैं कि 
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           हिंसाशून्यमयल्लयमशनं धांत्रा मरुत्कल्पितं व्यालानां पशवस्तणांकुरभुजस्तुष्टः स्थलीशायिनः।
          संसारार्णवलंधनक्षमर्थियां वृत्तिः कृता सा नृणां तामन्वेषयतां प्रयांति संततं सर्वे समाप्ति गुणाः।।
          ‘‘विधाता ने सापों के लिये भोजन के रूप में हवा का निर्माण किया जो उनको बिना किसी हिंसा के प्राप्त हो जाती है। पशुओं के लिये घास बनाई और सोने के लिये धरती का बिछौना बनाया। परंतु मनुष्य बुद्धिबल से ही भोजन प्राप्त कर सकता है इसलिये उसका पूरा जीवन केवल उसी में ही लग जाता है।’’
         मनुष्य का पेट तो रोटी से भी भर जाता है पर उसका मन फिर भी नहीं मानता। उसकी बुद्धि लोभ, लालच और मोह में इस तरह फंस जाती है कि हमेशा ही वह पैसा, पद और प्रतिष्ठा पाने के लिये इधर उधर भटकता है। अनेक लोग तो ऐसे हैं जो अच्छा खासा कमाते हैं पर कहते हैं कि ईमानदारी से उनका घर नहीं चल सकता। जबकि इस समाज में ऐसे भी लोग भी है जो केवल वेतन या थोड़ी कमाई के भी अपना जीवन यापन कर शांति से जीवन बिताते हैं। दरअसल हर जीव का दाता तो भगवान है पर जो लोग बेईमानी से धन कमाते हैं वह परिवार की जरूरतों को पूरा करने का ढोंग भले ही कर कर्ता बनने की खुशी पाते हैं पर वह उनका वहम है। अगर यह बेईमान देह त्याग भी दें तो भी उनका परिवार जिंदा रहेगा और उसके सदस्य अपने जीवन यापन के लिये कोई दूसरा मार्ग ढूंढ लेगा। ऐसे में उनकी परिवार की मज़बूरी केवल स्वयं को धोखा देने के लिये है।
          कहने का अभिप्राय यह है कि सभी का दाता परमात्मा है और बेईमानी और भ्रष्टाचार के लोग अपनी बाध्यताओं का दिखावा करें ऐसा करके वह स्वयं को धोखा देते हैं। अगर आदमी आत्ममंथन करे तभी इस बात को समझ सकता है।
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लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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