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Thursday, January 08, 2009

रहीम संदेश: आलोचकों की टिप्पणियों का जवाब न दें

कहते को कहिं जान दे, गुरू की सीख तू लेय
साकट जन और स्वान को, फेरि जवाब न देय


कविवर रहीम कहते है कि कहने वालों को कुछ भी कहने दो अपने गुरू की सीख लें और फिर अपने मार्ग पर चलें। अज्ञानी लोग और श्वान के भौंकने पर ध्यान न दें

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-लोगों का काम है कहना। सच तो यह है कि अपने जीवन में वह लोग कोई भी उपलब्धि प्राप्त नहीं कर पाते जो जो इस तरह कहने पर ध्यान देकर कोई कदम नहीं उठाते। अपने गुरू से चाहे वह आध्यात्मिक हो या सांसरिक ज्ञान देने वाला उसे शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन पथ पर बेखटके चल देना चाहिए। अगर उसके बाद अगर किसी के कहने पर ध्यान देते हैं तो अकारण व्यवधान पैदा होगा और अपने मार्ग पर चलने में विलंब करने से हानि भी हो सकती है। एक बात मान कर चलिए यहां ज्ञान बघारने वालों की कमी नहीं है। ऐसे लोग जिन्हें किसी भक्ति या सांसरिक क्षेत्र का खास ज्ञान नहीं होता वह खालीपीली अपनी सलाहें देते हैं और अपने अनुभव भी ऐसे बताते हैं जो उनके खुद नहीं बल्कि किसी अन्य व्यक्ति ने उनको सुनाये होते हैं।

इतना ही नहीं जब अपने मार्ग पर चलेंगे तो दस लोग टोकेंगे। आपके कार्यो की मीनमीेख निकालेंगे और तमाम तरह के भय दिखाऐंगे। इन सबकी परवाह मत करो और चलते जाओ। यही जीवन का नियम है। हम देख सकते हैं जो लोग अपने जीवन में सफल हुए हैं उन्होंने अन्य लोगों की क्या अपने लोगों भी परवाह नहीं की। जिन्होनें परवाह की ऐसे असंख्य लोगों को हम अपने आसपास देख सकते हैं।
दूसरों की आलोचना करने वाले लोग स्वयं ही कोई काम नहीं करना जानते। बड़े काम की बात तो छोडि़ये छोटे काम तक के उद्देश्य और प्रक्रिया का ज्ञान उनको नहीं होता। अगर कोई छोटा काम प्रारंभ किया जाये तो लोग अपनी प्रतिकूल टीका टिप्पणी से बाज नहीं आते ऐसे में अगर कोई बड़ा और महत्वपूर्ण कार्य प्रारंभ किया जाये तो उस पर तो लोग अनावश्यक रूप से वैसे ही अंटसंट बोलते रहते हैं। ऐसे में अगर हमने कोई महत्वपूर्ण काम प्रारंभ किया है तो फिर लोगों की आलोचना की परवाह नहीं करना चाहिये क्योंकि केवल टीका टिप्पणियां करने वाले लोग स्वयं निष्क्रिय होते हैं या अपना समय व्यर्थ के कार्यों में नष्ट करते हैं।
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