राम नाम धन बेचि के, शिष्य करन की आस
संत श्री कबीरदास जी के समय में भी गुरुओं की माया ऐसी हो गयी थी कि उनको कहना पड़े कि गुरु तो अब सस्ते हो गये हैं। पैसे के दम पर पचास गुरु कर लो। ऐसे गुरु राम नाम को बेच कर धन कमाते हैं और यह आशा करते हैं कि उनको शिष्य मिलें।
जा गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रांति न जिया की जाये
सो गुरु झूठा जानिए, त्यागत देर न जाए
संत शिरोमणि कबीरदास के अनुसार जिस गुरु के पास जाकर मन के भ्रम का निवारण नहीं होता उसे झूठा समझ कर त्याग दें। भ्रम के साथ जीवन जीना बेकार है और जो गुरु उसका निवारण नहीं कर सकता वह ढोंगी है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-कितनी आश्चर्य की बात है कि सैंकड़ों वर्ष पूर्व संत कबीरदास जी द्वारा कही गयी बात आज भी प्रासंगिक लगती है। यही कारण है कि भारतीय अध्यात्म विश्व में किसी अन्य ज्ञान से अधिक सत्य के निकट है पर यहां सर्वाधिक भ्रम में लोग रहते हैं। सब जानते हैं कि माया मिथ्या है पर उसी के इर्द गिर्द घूमते हैं। मजे की बात यह है कि भारतीय अध्यात्म के कथित ढोंगी प्रचारक प्राचीन ग्रंथों में वर्णित केवल उन्हीं प्रसंगों को उठाते हैं जिससे लोगों का मनोरंजन हो पर तत्वाज्ञान से वह अवगत न हों। कहानियां और किस्से सुनाकर लोगों को मनुष्य जीवन का रहस्य समझाते है पर तत्व ज्ञान की चर्चा ऐसे करते हैं जैसे देह से ही उसका संबंध हो। कर्मकांडों और यज्ञों के लिये प्रेरित करते हैं ताकि उसकी आड़ में उनको गुरुदक्षिणाा मिलती रहे।
गुरुओं को शिष्य हमेशा यही कहते हैं कि ‘हमारा तो गुरू बैठा है’। मतलब यह है कि उनके लिये वही भगवान है।’
बलिहारी गुरु जो आपकी जो गोविंद दिया दिखाय-इस वाक्य का उच्चारण हर गुरु करता है पर वह किसी को गोविंद नहंी दिखा पाता। लोग भी बिना गोविंद को देखे अपने गुरु को ही गोविंद जैसा मानने लगते हैं। गोविंद को केवल तत्वज्ञान से ही अनुभव किया जा सकता है पर न तो गुरु उसको बताते हैं और न ही शिष्य उसका मतलब जानते हैं। गोल गोल केवल इसी माया के चक्कर में दोनों घूमते हैं। यही कारण है कि भारतीय समाज अपने ही देश में प्रवर्तित अध्यात्म ज्ञान से परे हैं जिसे आज पूरा विश्व मानता है।
.................................
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
No comments:
Post a Comment