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Sunday, January 11, 2009

रहीम संदेश: दु:ख में भी मानसिक रूप से दृढ़ होना चाहिए

सरवर के खग एक से, बाढ़त प्रीति न धीम
पै मराल को मानसर, एकै ठौर रहीम


अधिकतर पक्षी एक समान होते हैं। उनका अपने जल स्त्रोंतो से लगाव तभी तक रहता है जब तक उसमें उनके लिये सुविधानुसार जल रहता है वरना इधर उधर से डोलते रहते हैं पर हंस केवल मानसरोवर में रहता है। यह उसकी दृढ़ता का प्रतीक है।

संपादकीय व्याख्या-इस संसार में सामान्य लोग स्वार्थ के आधार पर ही अपने संबंध बनानते और बिगाड़ते है। अब तो यह हालत यह हो गयी है कि लोग उन्हीं रिश्तेदारों के नाम सुनाते हैं जो प्रतिष्ठित और धनवान हैं। आपसी वार्तालाप में लोग अपने उन रिश्तेदारों और मित्रों का जिक्र अवश्य करते हैं जो पद, प्रतिष्ठा और पैसे की दृष्टि से शिखर पर है पर उन लोगों का नाम नहीं लेते जो सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं। इतना ही नहीं वह आते जाते भी उन लोगों के पास हैं जहां कभी उनका स्वार्थ सिद्ध होने की संभावना होती है। यह निम्न कोटि की प्रवृत्ति है। उच्च प्रवृत्ति के लोग सभी के प्रति समान दृष्टिकोण रखते हैं। ऐसे ही लोग सभी जगह सम्मान भी प्राप्त करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण जी श्रीगीता में यह स्पष्ट कथन है कि जो प्रिय को देखकर प्रसन्न नहीं होते और जो अप्रिय को देख दुःखी नहीं होते वही स्थिरप्रज्ञ है।

यह समदर्शिता का भाव रखना अपने जीवन में ही सुख का कारण होता है। जो मनुष्य यह भाव नहीं रखते उनको ही जीवन में तनाव झेलना पड़ता है। वह प्रतिष्ठत, उच्च पदासीन और पैसे वाले रिश्तेदारों और मित्रों के यहां जाकर कोई सम्मान नहीं पाते। वह यह समझते हैं कि समय आने पर वह काम आयेंगे तो यह भी तभी संभव होता है कि जब वह स्वयं उनका स्वार्थ सिद्ध करने वाले हों। अगर वह ऐसा करने में सक्षम नहीं होते तो समय पड़ने उन्हें अपने से उच्च व्यक्ति की सहायता नहीं मिलती भले ही आश्वासन मिल जाता हो ऐसे में उनको भारी निराशा भी झेलनी पड़ती है। जीवन में दु:ख सुख का दौर तो चलता रहता है पर दु:ख के समय अपने स्थान से हटकर दूसरे स्थान पर जाने का विचार नहीं करना चाहिए। इससे न केवल स्वयं ही मानसिक रूप से कमजोर होते हैं बल्कि दूसरों के सामने बिचारगी की स्थिति में प्रस्तुत होना पड़ता है और हमारा स्वाभिमान आहत होता है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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