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Friday, January 02, 2009

कबीर के दोहे:हाथी के मुहँ से दाना गिरे तो उसे अन्तर नहीं पड़ता

कुंजी मुख से कन गिरा, खुटै न वाको आहार
कौड़ी कन लेकर चली, पोषन दे परिवार

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि खाते हुए हाथी के मुख से यदि अन्न का दाना गिर जाये तो उसके आहार पर कोई अंतर नहीं पड़ता पर उसे चींटी ले जाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करती है। इस तरह यह संसार दया भाव पर चलता है।
भावे जाओ बादरी, भावै जावहु गया
कहै कबीर सुनो भाई साधो, सब ते बड़ी दया

संंत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि चाहे बद्रीनाथ जाओ या गया धाम, जहां अच्छा लगे वहां जाओं पर इस संसार में मन को प्रसन्न करने का केवल एक ही तरीका है कि दूसरे पर दया करो।
जहां दया वहां धर्म है, जहां लोभ तहं पाप
जहां क्रोध वहां काल है, वहां क्षमा वहां आप

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जहां दया है वहीं धर्म स्थित होता है और जहां लोभ है वहां पाप है। जहां क्रोध है वहां काल और जहां क्षमा है वहां परमात्मा का वास है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अधिकतर लोग अपने स्वार्थ की सिद्धि कर ही यह मानते हैं कि उन्होंने अपनी कर्तव्य को पूरा कर लिया। अपने परिवार का भरण भोषण करते हुए उसके सदस्यों की मांगों की पूर्ति करने का अर्थ यह नहीं कि हम संसार चला रहे हैं। सुख और दुःख से कोई मुक्त नहीं है। आपत्ति और प्रसन्नता समय के अनुसार सभी को प्राप्त होती है पर फिर भी हमारे लिये परीक्षा के क्षण तब आते हैं जब कि अन्य व्यक्ति को हमारी जरूरत होती है।

समय आने पर दूसरे की मदद करने वाले लोग भी हो्रते हैं। हम समय पड़ने पर किसी की सहायता न करें पर कोई तो किसी की मदद करता ही है। काम किसी का रुकता नहीं है पर हम अगर यह सोचकर किसी की सहायता नहीं करते कि कोई अन्य आकर कर लेगा तो हम अपने धर्म से विमुख होते हैं।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

2 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

kabir ko jankar bahut aanand or sukun milta hai. narayan narayan

निर्मला कपिला said...

aapko padhh kar mujhe lagtaa hai ke meri bad kismti hai jo main gwaliar aa kar bhi aapse mil nahi paayee pichhle saal gawaliar sahitaya sabha ki ore se mujhe sammanit karne ke liye bulaya gaya thaa tab tak main bloging ki dunia se nahi thi naya saal mubarak

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