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Friday, April 11, 2014

श्रीगुरुवाणी के आधार पर चिंत्तन लेख-दहेज परपरा देश और समाज के अनुकूल नहीं (a hindi thought based on shriguruwani -dahej pratha desh aur samaj ke anukul nahin)



     हमारे देश में दहेज परंपरा अब एक विकृत रूप ले चुकी है| सच बात यह है हमारे यहं लड़की के जन्म पर लोग इतने खुश नहीं होते जितना लड़के के समय होते हैं| इसकी मुख्य वजह यह है कि लड़की का बाप होने पर दूसरे के सामने झुकना पड़ता है जबकि लड़के कि वजह से दूसरे अपने सामने झुकते हैं| हमारे सामाजिक तथा अध्यात्मिक चिन्त्तक समाज का अनेक वर्षों से सचेत कर रहे हैं पर कोई सुधार नहीं हो रहा है| पहले तो कहा जाता था कि समाज अशिक्षित है पर अब तो यह देखा जा रहा है कि अधिक शिक्षित होने पर दहेज कि रकम अधिक मिलती है|
गुरुवाणी में कहा गया है
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होर मनमुख दाज जि रखि दिखलाहि,सु कूड़ि अहंकार कच पाजो
      हिंदी में भावार्थ-श्री गुरू ग्रन्थ साहिब के अनुसार लड़की के विवाह में  ऐसा दहेज दिया जाना चाहिए जिससे मन का सुख मिले और जो सभी को दिखलाया जा सके। ऐसा दहेज देने से क्या लाभ जिससे अहंकार और आडम्बर ही दिखाई दे।
हरि प्रभ मेरे बाबुला, हरि देवहु दान में दाजो।

           
हिन्दी में भावार्थ-श्री गुरुग्रंथ साहिब में दहेज प्रथा का आलोचना करते हुए कहा गया है कि वह पुत्रियां प्रशंसनीय हैं जो दहेज में अपने पिता से हरि के नाम का दान मांगती हैं।
     दहेज हमारे समाज की सबसे बड़ी बुराई है। चाहे कोई भी समाज हो वह इस प्रथा से मुक्त नहीं है। अक्सर हम दावा करते हैं कि हमारे यहां सभी धर्मों का सम्मान होता है और हमारे देश के लोगों का यह गुण है कि वह विचारधारा को अपने यहां समाहित कर लेते हैं। इस बात पर केवल इसलिये ही यकीन किया जाता है क्योंकि यह लड़की वालों से दहेज वसूलने की प्रथा उन धर्म के लोगों में भी बनी रहती है जो विदेश में निर्मित हुए और दहेज लेने देने की बात उनकी रीति का हिस्सा नहीं है। कहने का आशय यह है कि दहेज लेने और देने को हम यह मानते हैं कि यह ऐसे संस्कार हैं जो हमारी पहचान हैं  मिटने नहीं चाहिए।  कोई भी धर्म या  समाज हो  कथित रूप से इसी पर इतराता है।
      इस प्रथा के दुष्परिणामों पर बहुत कम लोग विचार करते हैं। इतना ही नहीं आधुनिक अर्थशास्त्र की भी इस पर नज़र नहीं है क्योंकि यह दहेज प्रथा हमारे यहां भ्रष्टाचार और बेईमानी का कारण है और इस तथ्य पर कोई भी नहीं देख पाता। अधिकतर लोग अपनी बेटियों की शादी अच्छे घर में करने के लिये ढेर सारा दहेज देते हैं इसलिये उसके संग्रह की चिंता उनको नैतिकता और ईमानदारी के पथ से विचलित कर देती है। केवल दहेज देने की चिंता ही नहीं लेने की चिंता में भी आदमी अपने घर पर धन संग्रह करता है ताकि उसकी धन संपदा देखकर बेटे की शादी में अच्छा दहेज मिले। यह दहेज प्रथा हमारी अध्यात्मिक विरासत की सबसे बड़ी शत्रु हैं और इससे बचना चाहिये। यह अलग बात है कि अध्यात्मिक, धर्म और समाज सेवा के शिखर पुरुष ही अपने बेटे बेटियों की शादी कर समाज को चिढ़ाते हैं। सच बात तो यह है कि यह पर्थ हमारे समाज के अस्तित्व पर संकर खड़ा किये हुए है और अगर यह ख़त्म नहीं हुए तो एक दिन यह समाज भी कह्तं हो जाएगा।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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