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Saturday, June 08, 2013

चाणक्य नीति के आधार पर चिंत्तन-जल भी देह के लिये दवा का काम करता है (watar medician for body-accortding chanakya policy)



   हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार जल, वायु, अग्नि, आकाश और प्रथ्वी इन पांच तत्वों से हर जीव  की देह बनी है और यही स्वास्थ्य खराब होने पर उसके लिये औषधि का काम करते हैं।  इनमें जल न केवल जीवनदायक है वरन स्वास्थ्य का निर्माण  भी करता है।  आजकल जब हम देख रहे हैं कि पूरे विश्व में खान पान तथा रहन सहन के तौर आधुनिक तरीकों से बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है तब उनके निदान के लिये हमें प्राचीन उपायों पर दृष्टिपात अवश्य करना चाहिये। खासतौर से जल के उपयोग से हम किस तरह अच्छा स्वास्थ्य बनाये रख सकते हैं इस विषय पर अवश्य विचार करना चाहिये।  आजकल भारत में भी अंग्रेजी पद्धति से बीमारी का इलाज का प्रचलन गया है और बहुत कम लोग इलाज के देशी नुस्खों पर यकीन करते हैं।  महत्वपूर्ण बात यह है कि अंग्रेजी पद्धति वाले चिकित्सक दवा के साथ खान पान में परहेज की बात भी करते हैं। इसका सीधी मतलब यह है कि उनकी दवाईयां भी पूर्ण रूप से नियमानुसार खान पान न करने पर काम नहीं करती हैं। 
चाणक्य नीति में कहा गया है कि

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अजीर्णों भेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम्।

भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम्।।

     हिन्दी में भावार्थ-अपच होने पर जल दवा का काम करता है।  भोजन पच जाने पर जल का सेवन बल प्रदान करता है और भोजन के बीच भी जल अमृत का काम करता है।  भोजन के बाद जल का सेवन विष की तरह हानिकारक है।

        आधुनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि भोजन तथा जल सेवन के उन नियमों का पालन किया जाये तो जो भारतीय जीवन पद्धति की देन हैं उससे बेहतर स्वास्थ्य बना रह सकता है। आमतौर सेे हमने देखा है कि लोग भोजन के बाद जल का सेवन बढ़ी मात्रा में करते हैं।  इससे उनके स्वास्थ्य पर असर बुरा पड़ता है।  अगर भोजन के दो घंटे नहीं तो  कम से कम एक घंटे बाद भी जल के सेवन का उपयोग किया जाये तो स्वास्थ्य का स्तर अच्छा बना रह सकता है। कहने का अभिप्राय यह है कि भोजन और जल के सेवन में नियमों का पालन कर भी प्रसन्न रह सकते हैं।  

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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