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Saturday, June 01, 2013

चाणक्य नीति-धनियों को समाज में सम्मान मिलना स्वाभाविक (chankya neeti-dhanwan ko samaj mein samman swabhavik roop se milen)



       बहुत प्रयास करने के बाद भी जिन लोगों के पास धन बहुतायत मात्रा में नहीं आता वह अफसोस कर अपना खून जलाने की बजाय भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान का अध्ययन करें। उसके अध्ययन करने से  ज्ञान होने पर उन्हें धनवानों की सभा में प्रवेश करने की इच्छा से मुक्ति मिल जायेगी।  हमारे प्राचीन  नीति विशारद हमेशा ही योग्यता, विद्वता तथा परिश्रमी मनुष्य का ही  जीवन धन्य मानते रहे हैं पर समाज के लोग धनी आदमी में देवताओं जैसे गुण देखते हैं।  अल्पधनी, परिश्रमी तथा अध्यात्मिक ज्ञानी को समाज सामान्य दृष्टि से देखता है।  कोई धनी किसी को धन बिना स्वार्थ के धन देता नहीं है पर उसकी तरफ आशा से ताक रहे लोग उसके इर्दगिर्दं रौशनी के आगे पतंगे मंडराते  हैं।  धनी लोगों के पास भीड़ देखकर अल्पधनी और निर्धन दोनों ही यह सोचते हैं कि वह उनकी अपेक्षा अधिक सम्मानीय हैं।  इतना ही नहीं कुछ लोग तो अर्थोपार्जन में सफल लोगों को विद्वान भी मानते हैं।  ऐसे में अगर अल्पधन या निर्धनता के रहते किसी को सम्मान नहीं मिलता तो उसे चिंता नहीं करना चाहिये। 
नीति विशारद चाणक्य कहते हैं कि
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यस्याऽर्थास्तिस्य मित्राणि यस्याऽर्थास्तस्य बान्धवा।
यस्याऽर्थः स पुर्माल्लोकेयस्याऽर्थाः स च पंडितः।।
           हिन्दी में भावार्थ-जिस व्यक्ति के पास धन है लोग स्वतः ही उसके पास आकर मित्र बन जाते हैं। रिश्तेदार भी उसे सम्मान देते हैं। आधुनिक मानव समाज की दृष्टि में विद्वान और सम्मानित माना जाता है।
      सच बात तो यह है कि जहां से अर्थ प्राप्त की आशा मनुष्य  को रहती है वहीं वह जाता है। वह उन धनोत्पादक स्थानों पर अपना वर्चस्व कायम करने के साथ ही धनी लोगों से अपने मधुर संपर्क बनाना चाहता है।  इसलिये अर्थ स्तोत्रों पर मनुष्य समुदाय की बहुतायत होने पर हैरानी नहीं होना चाहिये। जिन स्थानों या व्यक्तियों के पास अधिक धन है उनकी प्रतिष्ठा भी इसी कारण से बढ़ती है क्योंकि वहां से मनुष्य अकेला या समूह बनाकर अपने अंदर अर्थ की भावना शांत करने के लिये सक्रियता के साथ वहां जाता है। इसलिये जिनके घरों या जेबों में धन अल्प मात्रा में है उन्हें धनिकों केा मिलने वाले सम्मान के प्रति ईर्ष्या भाव त्याग कर अपने काम में लगे रहना चाहिये। वह अपने विचार बदल सकते हैं पर चाणक्य ने जो समाज की सच्चाई बताई है उससे कोई इंकार नहीं कर सकता।
  

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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