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Saturday, June 22, 2013

चाणक्य नीति-अपने जीवन में आत्ममंथन करते रहना चाहिए (apna atma manthan karnaa chahiye)




           वर्तमान शिक्षा पद्धति आदमी को नौकरी तथा उपभोग की के तत्वों के अलावा कुछ अन्य का ज्ञान नहीं देती। अधिकतर शिक्षित युवक नौकरी कर एक सभ्य उपभोगीय प्रवृत्ति के समाज का सदस्य बनना चाहते हैं। अध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में सांसरिक विषयों को ही वह जीवन का सत्य समझते हैं। यह सब ठीक है पर यह उपभोगीय प्रवृत्ति मनुष्य की संघर्ष क्षमता का कम करती है।  जब तक समय ठीक है तभी तक सभी प्रसन्न दिखते हैं पर थोड़ी विपत्ति आने पर ऐसे लोगों की हवा निकल जाती है है जो केवल बौद्धिक प्रयासों से जिन्दा   है।  शारीरिक श्रम के अभाव में शिक्षित समाज की हवा जल्दी निकल जाती है।
       विदुर नीति नीति में कहा भी गया है कि धनिक लोगों की पाचन क्षमता कम होती है। तय बात है कि जब पाचन शक्ति कमजोर होगी तो मनुष्य में संघर्ष क्षमता की कम रहेगी।  यह सब अध्यात्मिक ज्ञान होने पर ही समझा जा सकता है। मुख्य बात यह कि जो व्यक्ति समय समय पर आत्म मंथन करेगा वही अपनी स्थिति तथा शक्ति को समझ पायेगा।  आत्ममंथन की प्रकिया से गुजरने के बाद आदमी अपनी शक्ति तथा साधनों में समन्वय स्थापित कर सकता है।  अगर मनुष्य आत्ममंथन नहीं करेगा तो वह हमेशा ही अपनी स्थिति के पतन के भय से ग्रसित रहेगा।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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कः कालः काति मित्राणि को देशः की व्ययाऽगमौ
कश्चाचाऽहं का च मे शक्त्रििति विनयंमुहुर्मुहुः।।
     हिन्दी में भावार्थ-हमारे मित्र कैसे है? समय कैसा है? हम किस क्षेत्र में रहे रहे हैं। हमारे आय व्यय कीस्थिति क्या है? हम कौन है तथा हमारी शक्त् िकितनी है? ऐसे प्रश्नों पर हमेशा विचार करते रहना चाहिये।
तावट् भयेष भेतव्यं यावद्भयमनागतम्।
आगतं तु भयं दृष्टवांर प्रहर्तव्यमङ्कसर।।
          हिन्दी में भावार्थ-अपने मन में किसी भय को स्थान नहीं देना चाहिये।  जब संकट आये तभी भय का विचार करना चाहिये। जब सेकट सामने हो तो उस पर पूरी शक्ति से प्रहार करना चाहिये।
            जब आदमी चिंत्तन और आत्मंथन की प्रक्रिया नहीं करेगा तो उसके अंदर हमेशा ही अपनी स्थिति से गिरने का भय व्याप्त होगा। ऐसे ऐसे भय पैदा होंगे जिनकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। यह सभी भय कल्पित होते हैं। यह शक्तिहीन व्यक्ति की पहचान है जो कालांतर में कायर बन जाता है।  इसलिये जीवन में कोई काम सोच विचार करते हुए तो करना चाहिये पर परिणामों में

असफलता की आशंका कतई नहीं करना चाहिये।

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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