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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, August 31, 2011

श्री गुरु ग्रंथ साहिब से-सृष्टि का ज्ञान केवल परमात्मा के पास ही है (shri suru granth sahib-srishti aur parmatma)

         विश्व इतिहास में अनेक विद्वान हो गये पर वह इस बात का पता नहीं लगा सके कि इस सृष्टि का प्रारंभ कब और कहां से हुआ। सच तो यह है कि धर्म के ठेकेदार तमाम तरह के दावे करते हैं कि इस सृष्टि में तो बस एक ही आकाश, धरती और पाताल है जबकि पश्चिमी वैज्ञानिकों का मानना है कि अन्य जगह भी इस तरह की सृष्टि होने की संभावना हो सकती है। इस विषय पर अनेक शोध चल रहे हैं पर लगता नहीं है कि अभी निकट भविष्य में कोई वास्तविक रहस्य खोज पायेगा। यह बात अलग है कि इस विषय पर धर्म की आड़ लेकर अनेक बहसें होती हैं और कुछ लोग मानसिक विलास करते हैं। कोई कहता है कि परमात्मा एक है तो अनेक लोग कहते हैं कि परमात्मा तो अनंत है फिर कैसे माना जाये कि वह एक या अनेक।
गुरु ग्रंथ साहिब में कहा गया है कि
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थिति वारु न जोगी जाणै, रुति माह न कोई।
जा करता सिरठी कउ साजे, आपे जाणै सोई।।
          ‘‘बड़े बड़े ज्ञानी इस सृष्टि  का आदि और अंत नहीं जान सके। जिस समय इस सृष्टि की रचना हुई उस समय यहां क्या था यह केवल परमात्मा ही जान सकता है।
इह अंत जाणै कोई।
पाताला पाताल लख आगासा, आगास।
तिथे खंड मंडल चरभेंड।
             ‘‘इस सृष्टि के आदि और अंत को कोई नहीं जान सकता क्योंकि इसें आखों आकाश और पाताल हैं। इसकी रचना किसी कालखंड में हुई इसका ज्ञान तो केवल परमात्मा कोई ही हो सकता है।’’
         इन बहसों में उलझने से अच्छा है कि आदमी नाम स्मरण कर अपना जीवन बिताये। मुख्य बात यह है कि मनुष्य का मन एकरसता से ऊब जाता है। नियमित धनसंग्रह, परिवार का पालन पोषण तथा मनोरंजन करते हुए मनुष्य का मन कुछ विराम चाहता है जो केवल ध्यान की प्रक्रिया से ही संभव है। विश्व के स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि सांसरिक विषय ये अलग हटकर एकांत में ध्यान करने से मनुष्य को नवीनता अनुभव होती है। भारतीय दर्शन भी ध्यान के इर्दगिर्द ही अपना लक्ष्य निर्धारित करने का संदेश देता है। चूंकि भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान के संदर्भ ग्रंथों में अनेक रुचिकर कथायें हैं तो लोग उनका श्रवण और अध्ययन मनोरंजन की दृष्टि से करते हैं इसलिये उनका ध्यान सांसरिक भोग पदार्थों से विरक्त नहीं हो पाता। कुछ लोग सृष्टि के निर्माण की चर्चा करते हैं तो कुछ उस पर अपने व्यख्यान देकर अपने आपको ज्ञानी सिद्ध करते हैं मगर सच यही है कि इस सृष्टि के सही स्वरूप का ज्ञान किसी को नहीं है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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1 comment:

gsmalhadia said...

कोई भी हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई बौद्ध जैनी या अन्य किसी धर्म को मानने वाला सिक्खों की धार्मिक पुस्तक का अनादर करने से पूर्व एक बार जरूर पड़े
गुरु ग्रंथ साहिब जी सिक्खो का हि नहीं पूरी मानवता का सांझा ग्रंथ है इसमें दर्ज बाणी में लिखा गया है
1.अव्वल अला नूर उपाया कुदरत के सब बंदे एक नूर ते सब जग उपजिया कौन भले कौन मंदे
2.हरि जी आए हरि जी आए छड सिंहासन हरि जी आए
3.जान जानिए। राजा राम की कहानी
4.तेरी पनाह है खुदाए तु बखशिंदगी शेख फरिदे खैर दीजे बंदगी
यह सब पंक्तियां गुरु ग्रंथ साहिब जी में दर्ज हैं इसके अलावा
गुरुग्रंथ साहिब में छह गुरुओं, 15 भगतों, 11 भाटों तथा चार गुरु दर के कीर्तनी एवं निकटवर्ती भाई सत्ता, भाई बलविंद्र, बाबा सुंदर एवं भाई मर्दाना की बाणी दर्ज कराई। इस ग्रंथ में हरि शब्द 8344 बार, राम शब्द 2533 बार, प्रभु शब्द 1371 बार, गोपाल शब्द 491 बार, गोबिंद शब्द 475 बार तथा अल्लाह शब्द 46 बार अंकित है। गुरु ग्रंथ साहिब में कुल 1430 अंग हैं, जिसमें अक्षरों की कुल संख्या 10 लाख 24 हजार है तथा इसमें 31 रागों 22 वारों गुरु की बाणी दर्ज है।

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