यह आश्चर्य की बात है कि प्रकृति ने मनुष्य को देह, बुद्धि और मन की दृष्टि से अन्य जीवों की अपेक्षा सर्वाधिक शक्तिशाली जीव बनाया है तो सबसे अधिक आलसी भाव भी प्रदान किया। अधिकतर लोग लोग अपने तथा परिवार के स्वार्थ सिद्ध करने के बाद आराम करना चाहते है और परमार्थ उनको निरर्थक विषय लगता है जबकि पुरुषार्थ का भाव निष्काम कर्म से ही प्रमाणित होता है। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस देह से मनुष्य संसार का उपभोग करता है उसका ही महत्व नहीं समझता और भोगों में उसका नाश करता है। जिससे अंत समय में रोग उसके अंतिम सहयात्री बन जाते हैं और मृत्यु तक साथ रहते हैं।
योग साधना, ध्यान, भजन और उद्यानों की सैर करने से जो देह के साथ मन को भी जो नवीनता मिलती है उसका ज्ञान अधिकतर मनुष्यों को नहीं रहता। सच बात तो यह है कि शरीर और मन को प्रत्यक्ष रूप से प्रसन्न करने वाले विषय मनुष्य को आकर्षित करते है और वह इसमें सक्रिय होकर जीवन भर प्रसन्न रहने का निरर्थक प्रयास करत है। वह अपनी इसी सक्रियता को पुरुषार्थ समझता है जबकि अप्रत्यक्ष लाभ देने वाले योगासन, ध्यान, भजन तथा प्रातः उद्यानों में विचरण करना उसे एक निरर्थक क्रिया लगती है। सीधी बात कहें तो इस अप्रत्यक्ष लाभ के लिये निष्काम भाव से इन कर्मो में लगना ही पुरुषार्थ कहा जा सकता है।
हमारे पावन ग्रंथ सामवेद में कहा गया है कि
------------------------
विष्णोः कर्माणि पश्चत यतो व्रतानि पस्पशे।
‘‘भगवान विष्णु के पुरुषार्थों को देखो और उनका स्मरण करते हुए अनुसरण करो।’
ऋतस्य पथ्या अनु।
‘‘ज्ञानी सत्य मार्ग का अनुसरण करते हैं।’’
‘प्रेता जयता नर।’
आगे बढ़ो और विजय प्राप्त करो।’’
------------------------
विष्णोः कर्माणि पश्चत यतो व्रतानि पस्पशे।
‘‘भगवान विष्णु के पुरुषार्थों को देखो और उनका स्मरण करते हुए अनुसरण करो।’
ऋतस्य पथ्या अनु।
‘‘ज्ञानी सत्य मार्ग का अनुसरण करते हैं।’’
‘प्रेता जयता नर।’
आगे बढ़ो और विजय प्राप्त करो।’’
पुरुषार्थ करना मनुष्य का धर्म है और इसके लिये जरूरी है कि सत्य को मार्ग का अनुसरण किया जाये। आजकल जल्दी धनवान बनने के लिये असत्य मार्ग को भी अपनाने लगते हैं और उनको कामयाबी भी मिल जाती है पर जब उनको इसका दुष्परिणाम भी भोगना पड़ता है। यही कारण है कि ज्ञानी लोग कभी भी ऐसे गलत कार्य में अपना मन नहीं लगाते जिसका कालांतर में दुष्परिणाम भोगना पड़े।
कर्म और पुरुषार्थ के विषय में भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। वह संसार के पालनहार माने जाते हैं। ऐसा महान केवल पुरुषार्थ करने वालों को ही मिल सकता है। भगवान विष्णु के चौदह अवतार माने जाते हैं और हर अवतार में कहीं न कहीं उनका पुरुषार्थ प्रकट होता है। हमारा देश हमेशा ही श्रम प्रधान रहा है इसी कारन भगवन विष्णु नारायण के भक्त अधिक ही देखे जाते हैं।
लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप',Gwalior
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------http://deepkraj.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
No comments:
Post a Comment