‘मा चिदन्यद् वि शंसत सखायो मा रिषणयत।’
हिन्दी में भावार्थ-परमात्मा के अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति मत करो क्योंकि ऐसा करने से अपने मार्ग से हट जाओगे।
‘आ घा गमद्यति श्रवत् सहस्त्रिणीभिरूतिभिः।
वाजेभिरुप नो हवम्।
हिन्दी में भावार्थ-प्रभु का बल अनंत और उनके पास रक्षा करने के अनेक उपाय हैं। तुम आर्त भाव से उनके पास जाओ तो वह अपनी असीम शक्ति के साथ प्रकट होंगे और उनका वरदहस्त तुम्हें प्राप्त होगा।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-परमात्मा के अलावा कोई अन्य ऐसी शक्ति नहीं है जो हमारा उद्धार कर सके। अपने दैनोदिनी जीवन में अनेक प्रभावशाली लोगों से हमारा संपर्क होता है तो हम यह सोचकर उनकी चाटुकारिता करते हैं कि वह समय पर हमारे काम आयेंगे। कुछ लोग तो सारी सीमायें तोड़कर उनको अपना ईश्वर बताते हुए उनकी स्तुति करने लगते है। यह निरा अज्ञान मनुष्य को गुलामों जैसा जीवन जीने को बाध्य करता है।
इस संसार में कोई मनुष्य ऐसा नहीं है जो दैहिक गुण दोषों से मुक्त हो। सभी लोग अपने स्वार्थ से ही संबंध बनाते और बिगाड़ते हैं। अतः किसी भी मनुष्य पर निर्भर रहने की बजाय उस अनंत, असीम तथा महान शक्ति से संपन्न परमात्मा का नित्य स्मरण करना चाहिये। इस संसार में मुक्त भाव से जीने के लिये इससे अच्छा उपाय कोई नहीं है। यहां कोई किसी का भाग्य विधाता नहीं है। यदि कोई हमारी समय पर पड़ने पर सहायता करता है तो वह भी ईश्वरीय प्रेरणा से होता है- परमात्मा उसका अपना स्वार्थ हमारे अंदर स्थापित कर देते हैं जिसकी वजह से सहायता के लिये प्रेरित करते हैं परमात्मा का स्वयं कोई स्वार्थ सिद्ध नहीं होता। धन, बल, पद और प्रतिष्ठा के शिखर पर बैठे लोगों की स्तुति करने का कोई लाभ नहीं है क्योंकि जब तक उनके हजार स्वार्थ सिद्ध नहीं करोगे तब तक वह कोई एक काम नहीं करेंगे। उनके दरबार में उपस्थिति देते हुए चप्पल और जूते घिस जायेंगे अमीर हो या गरीब उस परमात्मा के द्वार पर याचक हो जाते हैं। देने वाला भी वही है तब क्यों किसी देहधारी मनुष्य को अपना भाग्यविधाता समझें? इससे तो अच्छा है सर्वशक्तिमान का ही स्मरण कर खुश रहने का प्रयास करें।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorहिन्दी में भावार्थ-परमात्मा के अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति मत करो क्योंकि ऐसा करने से अपने मार्ग से हट जाओगे।
‘आ घा गमद्यति श्रवत् सहस्त्रिणीभिरूतिभिः।
वाजेभिरुप नो हवम्।
हिन्दी में भावार्थ-प्रभु का बल अनंत और उनके पास रक्षा करने के अनेक उपाय हैं। तुम आर्त भाव से उनके पास जाओ तो वह अपनी असीम शक्ति के साथ प्रकट होंगे और उनका वरदहस्त तुम्हें प्राप्त होगा।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-परमात्मा के अलावा कोई अन्य ऐसी शक्ति नहीं है जो हमारा उद्धार कर सके। अपने दैनोदिनी जीवन में अनेक प्रभावशाली लोगों से हमारा संपर्क होता है तो हम यह सोचकर उनकी चाटुकारिता करते हैं कि वह समय पर हमारे काम आयेंगे। कुछ लोग तो सारी सीमायें तोड़कर उनको अपना ईश्वर बताते हुए उनकी स्तुति करने लगते है। यह निरा अज्ञान मनुष्य को गुलामों जैसा जीवन जीने को बाध्य करता है।
इस संसार में कोई मनुष्य ऐसा नहीं है जो दैहिक गुण दोषों से मुक्त हो। सभी लोग अपने स्वार्थ से ही संबंध बनाते और बिगाड़ते हैं। अतः किसी भी मनुष्य पर निर्भर रहने की बजाय उस अनंत, असीम तथा महान शक्ति से संपन्न परमात्मा का नित्य स्मरण करना चाहिये। इस संसार में मुक्त भाव से जीने के लिये इससे अच्छा उपाय कोई नहीं है। यहां कोई किसी का भाग्य विधाता नहीं है। यदि कोई हमारी समय पर पड़ने पर सहायता करता है तो वह भी ईश्वरीय प्रेरणा से होता है- परमात्मा उसका अपना स्वार्थ हमारे अंदर स्थापित कर देते हैं जिसकी वजह से सहायता के लिये प्रेरित करते हैं परमात्मा का स्वयं कोई स्वार्थ सिद्ध नहीं होता। धन, बल, पद और प्रतिष्ठा के शिखर पर बैठे लोगों की स्तुति करने का कोई लाभ नहीं है क्योंकि जब तक उनके हजार स्वार्थ सिद्ध नहीं करोगे तब तक वह कोई एक काम नहीं करेंगे। उनके दरबार में उपस्थिति देते हुए चप्पल और जूते घिस जायेंगे अमीर हो या गरीब उस परमात्मा के द्वार पर याचक हो जाते हैं। देने वाला भी वही है तब क्यों किसी देहधारी मनुष्य को अपना भाग्यविधाता समझें? इससे तो अच्छा है सर्वशक्तिमान का ही स्मरण कर खुश रहने का प्रयास करें।
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2 comments:
बहुत अच्छी बात कही आपने .. कोई भी मनुष्य पूजा के लायक नहीं होता .. किसी न किसी दिन अपने विश्वास का नाजायज फायदा उठा ही लेता है !!
आपने अच्छा विषय उठाया और वेदों का हवाला देकर मजबूत तरीके से अपनी बात रखी र्है।
यह सच है की पूजने और इबादत के लायक तो सिर्फ वो एक परमात्मा ही है,जो सबका परमेश्वर है और सच्चा परमेश्वर है। दुख की बात यह है कि ज्यादातर लोग भटके हुए हैं। हर किसी को उस परमेश्वर की जगह ला खड़ा करते हैं और लगते हैं उसको पूजने। कभी पत्थर को तो कभी सूरज-चांद को,सांप को,बंदर को,दरगाहों और कब्रों में सोए लोगों को। जिस किसी से काम की जरूरत महसूस हुई और उसीको ईश्वर बना डाला।
आपने सही कहा है कि हर किसी को ईश्वर मान लेने की सोच व्यक्ति को गुलामी की तरफ ही धकेलती है जबकि एक ही सर्वशक्तिमान को मानने की सोच व्यक्ति को खुद्दार और सच्चे परमेश्वर का सच्चा भक्त बनाती है। इंसानों में यह जज्बा पैदा करती है कि हम सबका ईश्वर एक ही है और इससे इंसानी भाईचारे को बढ़ावा मिलता है।
जरूरत इस बात की है कि परमेश्वर के सच्चे रूप को आम लोगों के बीच प्रसारित और प्रचारित किया जाए।
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