हिन्दी में भावार्थ-मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्गुण अहंकार है और इससे अन्य बुराईयां भी पैदा होती है।
जह गिआन प्रगासु अगिआन मिटंतु।
हिन्दी में भावार्थ-गुरु ग्रंथ साहिब के मतानुसार जिस प्रकार अंधेरे को दूर करने के लिये चिराग की आवश्यकता होती है उसी तरह अज्ञान रूपी अंधेरे को दूर करने के लिये प्रकाश आवश्यक है।
‘हउमै दीरघ रोग है दारु भी इस माहि।
किरपा करे जो आपणी ता गुर का सब्दु कमाहि।।’
हिन्दी में भावार्थ-अहंकार एक भयानक रोग है जिसकी जड़ें बहुत गहरे तक फैल जाती हैें। इसका इलाज गुरु की कृपा से प्राप्त शब्द ज्ञान से ही संभव हो सकता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-सभी जानते हैं कि अहंकार करना एक बुराई है पर इस रोग को पहचानना भी कठिन है। इसकी वजह यह है कि पंच तत्वों से बनी इस देह में मन और बुद्धि के साथ अहंकार की प्रकृत्ति भी स्वयंमेव बनती है। अनेक बार एक मनुष्य को दूसरे का अहंकार दिखाई देता है पर स्वयं का नहीं। इतना ही नहीं जब कोई व्यक्ति आक्रामक होकर दूसरों के विरुद्ध विषवमन करता है तब सभी लोग उसे अहंकारी कहते हैं जबकि सच यह है कि अहंकार कभी न कभी किसी में आता है या यूं कहें कि यह सभी में रहता है।
किसी भी कर्म में अपने कर्तापन की अनुभूति करना ही अहंकार है। जब मन में यह विचार आये कि ‘मैंने यह किया’ या ‘वह किया’ तब समझ लीजिये कि वह हमारे अंदर बैठा अहंकार बोल रहा है। फिर इससे आगे यह भी होता है कि जब हम किसी का कार्य करते हैं और उसका प्रतिफल भौतिक रूप से नहीं मिलता तब भारी निराशा घेर लेती है। आजकल आप किसी से भी चर्चा करिये वह अपने रिश्तेदारेां, मित्रों और सहकर्मियों के विश्वासघात की शिकायत करता मिलेगा। अहंकार का एक रूप यह भी है कि किसी से एक मनुष्य का काम कर दिया तो वह इस कारण भी उसका काम नहीं करता क्योंकि उसको लगता है कि वह छोटा हो जायेगा-अधिकतर लोग ऐसे भी हैं जो दूसरे के द्वारा कार्य करने पर अहसान मानने की बजाय हक अनुभव करते हैं तो कुछ लोगों को लगता है कि उनके गुणों के कारण कोई स्वार्थवश सेवा कर रहा है तो यह हमारी श्रेष्ठता का प्रमाण है। यही अहंकार मनुष्यों के बीच संघर्ष का कारण बनता है। समस्या इसे पहचानने की है। सच बात तो यह है कि अगर सभी लोग घमंड करना छोड़ दें तो किसी तरह का विवार कहीं न हो।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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