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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, February 13, 2010

पतंजलि योग दर्शन-सवितर्क और निर्वितर्क समाधि (patanjali yog darshan-samadhi)

तत्र शब्दार्थज्ञानविकल्पैः संकीर्णा सवितर्का समापत्ति।।
हिन्दी में भावार्थ-
यह समाधि की प्रारंभिक अवस्था है जिसमें मनुष्य का ध्यान सासंरिक विषयों से पृथक तो हो जाता है पर शब्द, अर्थ और ज्ञान का आभास कहीं ने कहीं उसके मस्तिष्क में बना रहता है।  इसे सवितर्क समाधि भी कहा जाता है।
स्मृतिपरिशुद्धो स्वरूपशून्येवार्थमात्रनिर्भासा निर्वितर्का।
हिन्दी में भावार्थ-
जब मस्तिष्क में स्मृति पूर्णतया विलुप्त हो जाये और केवल शून्य रूप का आभास हो और  निरंकार स्वरूप पर ध्यान केंद्रित हो तो इसे निर्वितर्क समाधि कहा जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-
शब्दिक गूढ़ता में पड़ने की बजाय हम सवितर्क समाधि को आंशिक तथा निर्वितर्क समाधि को पूर्ण समाधि भी कह सकते हैं।  दरअसल ध्यान लगाना बहुत कठिन काम है पर अगर अभ्यास हो जाये तो इतना सहज हो जाता है कि लगता ही नहीं है कि हम कोई विशेष काम कर रहे हैं। 
शुरुआत में ध्यान लगाते समय दिमाग में अनेक प्रकार के वही विचार आते हैं जो सामान्य अवस्था में आते हैं।  अक्सर लोग इससे विचलित हो जाते हैं और ध्यान की प्रक्रिया को कठिन मानकर उसे छोड़ देते हैं।
ध्यान की अवस्था की चरमा सीमा पर पहुंचना कोई सरल काम नहीं है पर अगर संकल्प लेकर अभ्यास किया जाये तो यह कठिन भी नहीं है। भ्रुकुटि पर (दोनों आंखों के बीच और नाक के ठीक ऊपर) ध्यान लगाने की प्रक्रिया प्रारंभ करें।  सांसरिक विषय आते हैं तो चिंता की बात नहीं। दरअसल यह विचार ऐसे विकार हैं जो प्रज्जवलित होकर नष्ट होने लगते हैं और उनका धुंआ उठकर हमारे ध्यान के केंद्र बिंदु पर आता है। जिस तरह हम कचड़ा जलाते हैं और वह नष्ट होते ही धुंआ विसर्जित करता है और हम अगर पास खड़े होते हैं तो धुंआं आंखों में घुसने लगता है।  हम उस धुंऐं से बचने के लिये उस आग पर पानी डालते क्योंकि हमें पता होता है कि यह थोड़ी देर की बात है और इससे कचड़ा नष्ट हो जायेगा। यही स्थिति ध्यान में आने वाले विचारों की है। धीरे धीरे ध्यान का समय बढ़ाते जायें और यह निश्चय कर लें कि किसी भी तरह ऐसी स्थिति प्राप्त करेंगे जिससे उस दौरान कोई विचार वहां न आये।  मगर यह भी आंशिक स्थित ही है क्योंकि तब भी हमारे दिमाग में इंद्रियों की उपस्थिति का आभास बना रहता है और आगे चलकर पूर्ण समाधि की स्थिति प्राप्त करना आवश्यक है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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1 comment:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

ज़रा इन महाशय के विचारों को भी देख लीजिए:

http://bhaarat-durdasha.blogspot.com/2010/02/blog-post_13.html

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