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Monday, December 28, 2009

भर्तृहरि नीति शतक-अभ्यास न करने से ज्ञान नष्ट हो जाता है (abhyas aur gyan-hindu dharm sandesh)

भर्तृहरि महाराज के अनुसार
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दौर्मन्त्र्यान्नृपतिर्विनष्यति यतिः सङगात्सुतालालनात् विप्रोऽन्ध्ययनात्कुलं कुतनयाच्छीलं खलोपासनात्
ह्यीर्मद्यादनवेक्षणादपि कृषिः स्नेहः प्रवासाश्रयान्मैत्री चाप्रणयात्सृद्धिरनयात् त्यागपमादाद्धनम्


हिंदी में भावार्थ-कुमित्रता से राजा, विषयासक्ति और कामना योगी, अधिक स्नेह से पुत्र, स्वाध्याय के अभाव से विद्वान, दुष्टों की संगत से सदाचार, मद्यपान से लज्जा, रक्षा के अभाव से कृषि, परदेस में मित्रता, अनैतिक आचरण से ऐश्वर्य, कुपात्र को दान देने वह प्रमाद से धन नष्ट हो जाता है।
वर्तमान संदर्भ संक्षिप्त व्याख्या-आशय यह है कि जीवन में मनुष्य जब कोई कर्म करता है तो उसका अच्छा और बुरा परिणाम यथानुसार प्राप्त होता है। कोई मनुष्य ऐसा नहीं है जो हमेशा बुरा काम करे या कोई हमेशा अच्छा काम करे। कर्म के अनुसार फल प्राप्त होता है। अच्छे कर्म से अर्थ और सम्मान की प्राप्ति होती है। ऐसे में अपनी अपनी उपलब्धियों से जब आदमी में अहंकार या लापरवाही का भाव पैदा होता है तब अपनी छबि गंवाने लगता है। अतः सदैव अपने कर्म संलिप्त रहते हुए अहंकार रहित जीवन बिताना चाहिये। मद्यपान, परनिंदा, अपने कार्य में लापरवाही, तथा दुष्ट लोगों से मित्रता करने की प्रवृत्ति से बचना चाहिये अन्यथा जीवन कष्ट मय होता है।

यह मानकर चलना चहिये कि हमें मान, सम्मान तथा लोगों का विश्वास प्राप्त हो रहा है वह अच्छे कर्मों की देन है और उनमें निरंतरता बनी रहे उसके लिये कार्य करना चाहिये। अगर अपनी उपलब्धियों से बौखला कर जीवन पथ से हट गये तो फिर वह मान सम्मान और लोगों का विश्वास दूर होने लगता है। अधिक अहंकार से दूसरे लोग सामने भले ही कुछ न कहें पर पीठ पीछे निंदा करने लगते हैं और यह हमारी स्वयं की छवि के लिये अच्छा नहीं होता।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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