मुख में आमिष मेलहिं, नरक पड़े सो जाये।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि मांस तो श्वान का भोजन है फिर मनुष्य की देह पाकर उसे क्यों खाये। यह जानते हुए भी जो मांस खायेगा वह नरक में जायेगा।
मांस मछलियां खात है, सुरा पान सों हेत।
ते नर जड़ से जाहिंगे, ज्यों मूरी का खेत।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जो मनुष्य मांस और मछली खाना और शराब पीना पसंद करते हैं वह नराधम मूली के खेत के समान है जो जड़ से नष्ट हो जायेंगे।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जिस तरह समाज में मांस और मदिरा के सेवन की प्रवृत्ति बढ़ रही है वैसे ही अपराध और ठगी का पैमाना भी बढ़ा है। पहले तो यह स्थिति थी कि शराब पीने वाले को समाज में हेय और निकृष्ट समझा जाता था पर आज यह हालत है कि जो शराब या मांस का सेवन नहीं करता उसे पिछड़ा समझा जाता है। कहने को तो देश बहुत संस्कृतिनिष्ठ है पर अब परंपरागत कार्यक्रमों में शराब का सेवन खुलकर किया जाता है। कई बार तो यह देखा गया है कि शादी विवाह या अन्य अवसर पर आयोजित घरेलू धार्मिक कार्यक्रमों लोग शराब पीकर शामिल होते हैं। शराब के इस सेवन से लोगों की मानसिकता विकृत हो गयी है और हम भले ही यह दावा करते हैं कि हमारा देश धर्मनिष्ठ और संस्कृतिनिष्ठ है पर वास्तविकता यह है कि हम अपनी राह से भटक गये हैं। सच बात तो यह है कि अब हमें आत्ममंथन करना चाहिये कि हमारे अपने ही दावों में कितना दम है।
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