समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, September 07, 2009

भर्तृहरि नीति शतक-ख़ुशी और गम से परे होते है ज्ञानी (khushi, gam aur gyani-bhartrihari shatak

वहति भुवन श्रेणिं शेषंः फणाफलक स्थितां कमठपतिना मध्ये पृष्ठं सदा स च धार्यते।
तमपि कुरुते क्रोडाधीनं पयोधिरनादरादहह! महतां निःसीमानश्चरित्रविभूतयः।।
हिंदी में भावार्थ-
महाराज भर्तृहरि कहते हैं कि भगवान शेष जी ने इस विशाल पृथ्वी को अपने सिर पर धारण कर रखा है तो उनको भी कच्छप जी ने अपनी पीठ पर धारण किया हुआ है। उन्हीं कच्छप जी को भी समुद्र ने अपनी गोद में स्थान दिया है। यही महापुरुषों का महिमागान करने योग्य चरित्र है।

चाण्डालः किमयं द्विजातिरथवा शूद्रोऽथ किं तापसः किं वा तत्तविवेकपेशलमतियोंगीश्वरः कोऽपि किम्।
इत्युत्पन्नविकल्पजल्पमुखरैराभाष्यमाणा जनैनं क्रुद्धाः पथि नैव तुष्टमनसो यांन्ति स्वयं योगिनः।।
हिन्दी में भावार्थ-
महाराज भर्तृहरि कहते हैं कि कोई चाण्डाल है अथवा ब्राह्मण, शूद्र है अथवा तपस्वी या फिर सत्य ज्ञान धारण करने वाला कोई योगी? जिन लोगों ने तत्वज्ञान प्राप्त कर लिया है वह सत्य के मार्ग पर चलते हुए किसी के द्वारा विद्वान कहने पर न तो प्रसन्न होते हैं न मूर्ख या दुष्ट कहने पर क्रोध में आते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपाकदीय व्याख्या-अपने कर्म करने के पश्चात् उस पर अहंकार न दिखाना ज्ञानी पुरुषों की पहचान है। इंसान ही नहीं बल्कि हर जीव इस धरती पर आने के बाद कर्म कर ही जीवित रहता है। अंतर यह है कि मनुष्यों में सामान्य प्रवृत्ति वाले जीवन भर केवल अपने लिये कर्म करते हुए इतराते है और कुछ ज्ञानी दूसरे के लिये कर्म कर भी उसका प्रचार नहीं करते।
आजकल तो अहंकार दिखाने वाले सभी जगह मिल जाते हैं। अपने लिये मकान बनाया, कार खरीदा, और बेटे या बेटी को अच्छी नौकरी लगी और उनका विवाह कराया-इसका प्रचार करते हुए लोग एसा अनुभव कराते हैं कि जैसे उन्होंने कोई महत्व्पूर्ण काम कर दिया। जीवन के यह कार्य तो स्वाभाविक रूप से होते हैं पर अज्ञानी लोगों का जनसमूह इनको ही जीवन की उपलब्धि मान लेता है। फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो पूरे जीवन में अपना काम करते हुए परोपकार भी करते हैं फिर भी प्रचार नहीं करते-ऐसे लोग तो तो तत्वाज्ञनी होते हैं।
............................
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

No comments:

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें