संतापाद् भश्यते ज्ञानं संतापाद् व्याधिमृच्छति।।
हिंदी में भावार्थ-संताप से स्त्री का सौंर्दय और पुरुष का बल नष्ट होता है। संताप से ज्ञान नष्ट होता है और संताप से रोग प्राप्त होता है।
अर्चयेदेव मित्राणि सति वासति वा धने।
नानर्थयन् प्रजानाति मित्राणां सारफल्गुनताम्
हिंदी में भावार्थ- मित्र धनवान हो या नहीं उसका सत्कार अवश्य करें। अपने किसी भी मित्र से कुछ न मांगें और न ही कभी उनके आचरण की परीक्षा लेने का प्रयास करें।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-यह मानवीय स्वभाव है कि वह स्वार्थ की वजह से संपर्क बनाता है पर मित्रता स्वाभाविक रूप से हो जाती है। इसके बावजूद मित्रता का निर्वाह सभी नहीं कर पाते बल्कि अपना समय और स्वार्थ निकलते ही मित्र से नाता तोड़ लेते हैं। ऐसे स्वार्थी लोग अपने मित्र बनाते और बिगाड़ते हैं पर कभी विपत्ति में उनको कोई सहायता नहीं करता। मित्र विपत्ति में काम आते हैं इसलिये वह धनी हो या गरीब उनका सत्कार हमेशा करना चाहिए।
आजकल जीवन बहुत संघर्षमय हो गया है इसलिये तनाव स्वाभाविक रूप से होता है। यह तनाव स्त्री का सौंदर्य और पुरुष का बल नष्ट करता है। अपनी देह, मन और वैचारिक शक्ति बनाये रखने के लिये योगासन और प्राणायम करते रहना चाहिए। अधिक तनाव से अपना ज्ञान तो नष्ट होता ही है बल्कि तमाम तरह के रोग भी होते हैं। अनेक मनोचिकित्सक यह कहते हैं कि मधुमेह, रक्तचाप तथा अन्य बीमारियों की उत्पति का कारण ही मानसिक तनाव होता है। इसलिये योग साधना करने के साथ ही अध्यात्मिक ज्ञान में भी रुचि लेना चाहिये जिससे मानसिक तनाव कम रहे।
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