कहैं कबीर समुझाय के, मति कोई मांगे भीख।।
संत कबीर दास जी कहते हैं कि भीख मांगना मरने के समान है। जहां तक हो सके जीवन में किसी से मांग कर अपना भरण भोषण नहीं करना चाहिये।
उदर समाता मांगि ले, ताको नहीं दोष।
कहैं कबीर अधिक गहैं, ताको गति न मोष।।
संत कबीरदास जी कहते हैं कि जितनी पेट की आवश्यकता हो उतना किसी से मांगना गलत नहीं है पर अधिक लालच करने वाले का मोक्ष नहीं होता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-देश में भिखारियों की संख्या निंरतर बढ़ती जा रही है। इसमें कई ऐसे भिखमंगे हैं जिनकी यह आदत होती है न कि मजबूरी। हमारे देश में अन्न और धन दान के प्रवृत्ति है उसका लाभ उठाते हुए अनेक लोग बचपन से ही भीख मांगना प्रारंभ करते देते हें और फिर जीवन पर्यंत उससे मुक्त नहीं हो पाते। इतना ही नहीं कई तो ऐसे भिखारी भी हैं जिनके बच्चे अपने व्यवसाय से अच्छी आय कर लेते हैं और इससे उनका समाज में सम्मान भी होता है पर अपने पालक को भीख मांगने से वह भी नहीं रोक पाते। ऐसे अनेक समाचार मिलते रहते हैं कि अमुक भिखारी मिला तो उसके पास से इतने सारा धन मिला कि उसकी कल्पना कोई नहीं कर सकता। भले ही उनके पास ढेर सारा धन रहा हो पर वह उनके किसी काम का नहीं रहा और वह जीवन भर एक मृतक के समान दूसरे की दया पर आश्रित रहे।
कबीर यह भी कहते हैं कि सर्वशक्तिमान से उतना ही मांगना चाहिये जिससे अपने घर परिवार की आवश्यकतायें पूरी हों। अपनी सकाम प्रार्थना में यह मांग मन में रखना बुरा नहीं है पर इससे अधिक विलासिता पूर्ण जीवन की चाहत करने वालों की कोई गति नहीं है। वह लोभवश ही भगवान की भक्ति करते हैं जिसका उनको कोई लाभ नहीं होता।
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