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Wednesday, April 15, 2009

कबीर के दोहे: गाली जलता अंगारा, क्रोध आग और निंदा धुएँ सामान है

कोटि करम लोग रहै, एक क्रोध की लार
किया कराया सब गया, जब आया हंकार

श्री कबीरदास जी के मतानुसार क्रोध करने से अनेक प्रकार के पाप कर्मों की उत्पति होती है। जब आदमी अहंकार में आकर क्रोध करता है तब उसके सब किये कराये पर पानी फिर जाता है।
गार अंगार, क्रोध झल, निन्दा धु्रवा होय
इन तीनो परिहरै, साधु कहावै सोय

श्री कबीरदास जी कहते हैं कि गाली जलते अंगारे, क्रोध उसकी आग और निंदा उसका धुआं है। जो इन तीन से परे है वही साधु कहा जा सकता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य के अंदर अहंकार स्वाभाविक रूप से रहता है पर आजकल खान पान मेंे कृत्रिमता होने से वैसे भी लोगों की देह में वैसे भी शक्ति नहीं है और फिर जीवन इतना कठिन हो गया है कि उसका संघर्ष आदमी के अंदर निराशा उत्पन्न कर देता है। कहा भी जाता है कि जैसा अन्न वैसा मन। देखा जाये तो खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ाने के लिये जिस तरह कृत्रिम साधनों का प्रयोग बढ़ रहा है उससे आदमी की देह में शक्ति कम विकार अधिक उत्पन्न होता है ऐसे में लोगों जरा जरा सी बात पर उत्तेजित होना, अपशब्द कहना और निराशा हो जाना एक तरह से आम बात हो गयी है। समाज में एक ऐसा तनाव है जिसे वही देख सकता है जो दृष्टा की तरह देख रहा हो।

लोग आपस में बात करते हुए लड़ पड़ते हैं और गालिया बकने लगते है। सामान्य बातचीत में लोग ऐसे ही गंदे शब्द अनावश्यक रूप से प्रयोग करते हैं। यह मनोदशा ठीक होने का प्रमाण नहीं हैं। सबसे बड़ी समस्या तो लोगों को अपने अंदर अहंकार आना है। जहां भी आंख उठाकर देखिए लोग देहाभिमान में फूले जा रहे हैं और इसी कारण भीड़ में भी अकेला अनुभव करते हैं।

आपने देखा होगा कि बूढ़े लोग बहुत कष्ट उठाते दिखते हैं पर सच तो यह है कि वह इस अहंकार में रहते हैं कि वह तो अब बूढें हो गये हैं और हर किसी की दया के पात्र हैं तब वह अपने ही बच्चों के साथ ऐसे पेश आते हैं कि वह बदनामी के डर से उनको अधिक सम्मान देंगे पर होता इसका उल्टा ही है और फिर वह रोते हैं कि बहू सम्मान नहीं करती बेटा पूछता नहीं। अनेक वृद्ध दंपत्ति अकेले जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसका कारण उनका अहंकार ही है जो उन्होंने अपने बच्चों में भी भरा। अधिकतर लोग इस बात का ध्यान नहीं करते और वह बच्चों को केवल अपना परिवार पालने की प्रेरणा ही देते हैं फिर जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो अपने घर में लग जाते हैं और मां बाप तो उनकी गृहस्थी से बाहर हो जाते हैं। ऐसे में फिर वह शिकायत करते हैं तो उनको सोचना चाहिये कि यह उनके ही अहंकार का नतीजा है। उन्होंने ही अपने बच्चों मेंे अपने परिवार के अहंकार का भाव भरा जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें अकेला दुःख भोगना पड़ता है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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