आजकल लोग सेवक की बजाय स्वामी बनने के लिये आतुर रहते है और जिनके हाथ में वैभव का भंडार है वह भगवान बनकर अपने लिये भक्तों को खरीदना चाहते है। हनुमान जी का राम और सुग्रीव के प्रति जो समर्पण था वह सत्य और धर्म की वजह से था-न कि उसके पीछे उनका कोई स्वार्थ था। श्री राम मर्यादा पुरुषोतम थे ओर किसी भी स्थिति में उन्होंने धर्म से मूंह नहीं मोड़ा था। सुग्रीव ने हर स्थिति में श्रीराम को सहायता का आश्वासन दिया था। जब राजपाट मिल गया और वह वैभव और व्यसनों के मायाजाल में फंसकर अपना मूल कर्तव्य भुला बैठे तब एक हनुमान ही थे जो उन्हें लगातार समझाते रहे कि उन्हें अपने कर्तव्य का स्मरण करना चाहिए। यह उनके सेवा और भक्ति की सही शक्ति थी जो अपने स्वामी से सत्य कहने का सहस प्रदान करती है। श्रीसुग्रीव ने उनकी बात मान ली और अपनी सेना को तैयार होने का आदेश दिया। इसी बीच कुपित लक्ष्मण जब उनके महल में दाखिल हो गये तो सबसे पहले हनुमानजी ने ही उन्हें प्रसन्न करने के लिए समझाया था। श्रीलक्ष्मण जी उनकी बात सुनकर ही शांत हुए थे। इस प्रसंग में यह स्मष्ट होता है कि श्रीहनुमान जी न वरन् समय, देशकाल तथा राज्य की परिस्थितियों का ज्ञान रखते थे बल्कि उन्हें राजनीति का भी अच्छा ज्ञान था।
किष्किंधा में सुग्रीव के बाद श्री हनुमान जी को ही सम्मान प्राप्त था। यह उनके बाहूबल के साथ उनके बुद्धिमान होने का भी प्रमाण था। जब सीता जी की खोज में सब वानर थक गये तब उनके नेता अंगद का धीरज टूट गया और वह आमरण अनशन पर बैठ गये। श्री हनुमान ने तब विचार किया कि इस तरह तो अंगद संभवतः सुग्रीव का राज्य छीन लेंगे-कारण वानरों में कष्ट सहने की क्षमता वैसे ही कम होती है, और जब भूख से यह लोग बिलबिलाऐंगे ओर उनको परिवार की याद आयेगी तो वह उग्र हो जायेंगे और सुग्रीव का भय इनमें समाप्त हो जायेगा। तब वह अंगद को आगे कर उनसे लड़ने को भी तैयार हो जायेंगे।विचार करते हुए श्रीहनुमान जी ने वहां सब वानरों को पृथक-पृथक समझाकर कर अंगद से अलग कर दिया और फिर उन्हें समझाने लगे कि यह वानर आपका लंबे समय तक साथ देने वाले नहीं है पर इससे आप सुग्रीव को जरूर नाराज कर लेंगे। उनकी बात का अंगद पर प्रभाव हुआ और वह अपना अभियान आगे जारी रखने को तैयार हुए। इस प्रसंग से श्री हनुमान जी के रणनीतिक चातुर्य और बौद्धिक कौशल की जो अनूठी मिसाल मिलती है वह विरले ही चरित्रों में होती है। उनका एक गुण जिसने उनके चरित्र को भगवान पद पर प्रतिष्ठित किया वह है अहंकार रहित होना। इतने शक्तिशाली और बुद्धिमान होते हुए भी किसी को हानि पहुंचाना या अपमानित करने जैसा कार्य उन्होंने कभी नहीं किया। वह अपनी शक्ति का स्मरण तक नहीं करते थे। जब लंका जाने का प्रश्न आया तो सब घबड़ा गये तब जाम्बवान ने जब श्रीहनुमान को अपनी शक्ति का स्मरण कराकर इस कार्य के लिये प्रेरित किया तब वह तैयार हो गये। जरा हम आजकल लोगों के चरित्र पर दृष्टिपात करें जो थोड़ा धन, छोटा पद, और छोटी सफलता में ही मतमस्त हो जाते है। उन्हें श्रीहनुमान जी के चरित्र का अध्ययन कर यह सीखना चाहिए कि शक्ति का प्रदर्शन दूसरों का दिखाने के लिये नहीं वरन् समाज और राष्ट्र हित के लिये करना चाहिए। हमने श्रीहनुमान जी के चरित्र की जो चर्चा की उसे हर कोई जानता है।
अपने देश के अध्यात्मिक लोग मानते हैं ऐसी सत्संग चर्चा होती रहना चाहिए। जब हम किसी के अच्छे गुणों की चर्चा करते है तो वह धीरे धीरे हम में भी स्थापित हो जाते है और हम कभी किसी के बुराईयों की चर्चा करते हैं तो वह भी हमारे अंदर आ जाती है। अत: अपने इष्टों की भक्ति के साथ उनके गुणों का भी बखान करते रहना चाहिए उनसे प्रेरणा मिले। इस पावन अवसर पर हम भगवान श्री हनुमान का स्मरण करते हुए उनको प्रणाम करते हैं। इस अवसर पर समस्त पाठकों और ब्लॉग लेखक मित्रो को बधाई।
दीपक भारतदीप
-----------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की शब्दयोग सारथी-पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग शब्दलेख सारथि
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
जय हनुमान !!!
Post a Comment