पीत्वाऽपोध्यध्यमाणश्च आचामेत्प्रयतोऽपि सन्।।
हिंदी में भावार्थ-सोने, छींकने, खाने, थूकने और झूठ बोलने के बाद अपनी शुद्धि पानी पीकर करनी चाहिए। इसके बाद भी अध्ययन करने से पहले एक बार जल का आचमन करना चाहिए।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-समय के साथ हमने कई पुराने संदेशों को भुला दिया है। पानी का सेवन करने से शरीर में कई प्रकार से शुद्धता आती है और तन की शुद्धता से ही मन में शुद्धता का भाव स्थापित हो पाता है। आजकल तो लोग अपने शरीर के साथ अधिक खिलवाड़ करते हैं। कंप्यूटर और टीवी में अपनी आंखों से निरंतर देखते रहते हैं इससे जो तन और मन में हानि होती है उसकी जानकारी उनको नहीं होती है। अनेक जानकार कहते हैं कि कंप्यूटर और टीवी पर एक संक्षिप्त अवधि से दृष्टिपात करने के बाद पानी पीना चाहिए और मूंह में कुल्ला भरकर आंखों में छींटे मारना चाहिए। हमारे देश में किसी भी वस्तु के उपभोग पर लोग उतारू तो हो जाते है पर उससे संबंधित सावधानियों पर ध्यान नहीं देते। कंप्यूटर पर काम करने के बाद अपनी आंखों पर पानी के छींटे मारने से जो राहत मिलती है उससे मस्तिष्क में आये तनाव से मुक्ति मिलती है। सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों को यही पता नहीं होता कि तनाव क्या होता है? जब इस तरह पानी के छींटें मारें तब जो राहत मिलती है उस से ही पता लगता है कि कोई तनाव भी होता है।
-------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
No comments:
Post a Comment