मंड़ए तर की गाँठ में, गाँठ गाँठ रस होय
कविवर रहीम कहते हैं कि यह संसार खोजकर देख लिया है, जहाँ परस्पर ईर्ष्या आदि की गाँठ है, वहाँ आनंद नहीं है. महुए के पेड़ की प्रत्येक गाँठ में रस ही रस होता है क्योंकि वे परस्पर जुडी होतीं हैं.
जलहिं मिले रहीम ज्यों, कियो आपु सम छीर
अंगवहि आपुहि आप त्यों, सकल आंच की भीर
कविवर रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार जल दूध में मिलकर दूध बन जाता है, उसी प्रकार जीव का शरीर अग्नि में मिलकर अग्नि हो जाता है.
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जहां दो मनुष्यों में एक दूसरे के प्रति ईष्र्या है वहां किसी के दिल में भी संतोष नहीं रहा सकता। अक्सर लोग आपस में एक दूसरे के प्रति प्रेम होने का दावा करते हैं पर उनके मन में आपस में ही द्वेष, कटुता और ईष्र्या का भाव रहता है। इस तरह वह स्वयं को धोखा देते हैं। प्रेम तो तभी संभव है जब एक दूसरे की सफलता पर हृदय मेंें प्रसन्नता का भाव हो। हालांकि मूंह पर दिखाने के लिये एक मित्र अपने दूसरे मित्र की, भाई अपने भाई की या रिश्तेदार अपने दूसरे रिश्तेदार की सफलता पर बधाई देते हैं पर हृदय में कहीं न कहीं ईष्र्या का भाव होता है। यह दिखावे का प्रेम है और इस पर स्वयं को कोई आशा नहीं करना चाहिये क्योंकि न हम स्वयं दूसरे से वास्तव में प्रेम नहीं करते और न ही कोई हमें करता है। जहां ईष्र्या की गांठ हैं वहां प्रेम हो ही नहीं सकता।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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