रीतेहि सन्मुख होत है, भरी दिखावै पीठ
कविवर रहीम कहते हैं कि नीच आदमी की प्रवृत्ति रहंट की घडि़या की तरह होती है जब पानी भरना होता है तो वह उसके आगे अपना सिर झुकाती है और जब जब भर जाता है तो उससे मूंह फेर लेती है। ऐसे ही नीच आदमी जब किसी में काम पड़ता है तो उसके आगे सिर झुकाता है और कम करते ही मूंह फेर लेता है।
रहिमन खोटि आदि की, सो परिनाम लखाय
जैसे दीपक तम भरवै, कज्जल वमन कराय
कविवर रहीम कहते हैं कि अगर किसी काम का आरंभ जैसे होता है वैसे ही उसके अनुसार परिणाम पर उसका अंत होता है। जैसे दीपक अपने प्रज्जवलित होते ही ऊपर के अंधेरे को अंदर भरता है और रोशनी करने के बावजूद उसके तल में अंधेरा ही रहता है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-अपना काम निकाल कर मूंह फेरना नीच लोगों की प्रवृत्ति है। अपना आत्ममंथन कर देखना चाहिये कि यह प्रवृत्ति कहीं हमारे अंदर भी तो नहीं है। वैसे आजकल चाटुकारिता और चमचागिरी का समय है। जब तक कोई आदमी धनी,प्रतिष्ठित और बड़े ओहदे पर है उसके आगे चाटुकारों का जमावड़ा होता है जैसे ही वह पतन की ओर अग्रसर होता हैं वैसे ही सभी साथ छोड़ जाते हैं। आदमी की यह प्रवृित्त चूहों की तरह ही है जो डूबते जहाज को सबसे पहले छोड़कर भागते हैं।
किसी भी काम को बिना सोचे समझे प्रारंभ नहीं करना चाहिये क्योंकि जिस काम की जैसी शुरुआत होती है वैसे ही उसका अंत भी होता है। किसी अभियान या लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये उसका अध्ययन कर लेना चाहिये और फिर अपने साधन और सहयोगियों को चयन करें। उतावली से शुरु किये गये काम का परिणाम भी निराशाजनक होता हैं। इसके अलावा अपने अंदर यह अहंकार भी नहीं पालना चाहिये कि ‘मुझे सभी कुछ आता है’। जहां सीखने का अवसर मिले वह दिल लगाना चाहिये। यह जीवन बहुत लंबा और संघर्षमय होता है पता नहीं कब किस ज्ञान या सीख की हमें आवश्यकता पड़ जाये।
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