भारत में जैसे जैसे विकास बढ़ रहा है वैसे ही
अपराध, दुर्घटनायें तथा आत्महत्या के प्रकरण भी बढ़ रहे
हैं। पहले हम पश्चिम में जिस प्रकार की
दुर्घटनाओं के समाचार देखकर उंगलियां दबाते थे उसी प्रकार अब अपने देश में होने पर
परेशान होते हैं। एक बात निश्चित है कि जितना
भौतिक विकास होता है उतना ही आदमी अध्यत्मिक ज्ञान से परे हो जाता है। उसी दैहिक तथा मानसिक इंद्रियां बाहरी दृश्यों
पर अधिक केंद्रित हो जाती हैं जिससे आत्म चिंत्तन तथा मनन की प्रक्रिया से वह दूर
हो जाता है। तीव्रगति में मति मंद तथा विलासिता से कुंठित होती है यह हम देश के
वर्तमान परिदृश्य से समझ सकते हैं।
विदुर नीति में कहा गया है कि---------------------------धर्मार्थोश्यः परित्यज्य स्यादिन्द्रियवशानगुः।
श्रीप्राणधनदारेभ्यः क्षिप्र स परिहीयते।।
हिन्दी में भावार्थ- जो मनुष्य धर्म और अर्थ इंद्रियों के वश में हो जाता है वह शीघ्र ही अपने ऐश्वर्य, प्राण, धन, स्त्री को अपने हाथ से गंवा बैठता है।अर्थानामीश्वरो यः स्यादिन्द्रियाणमीनश्वरः।
इन्द्रियाणामनैश्वर्यर्दिश्वर्याद भ्रश्यते हि सः।।
हिन्दी में भावार्थ-अधिक धन का स्वामी होने भी इंद्रियों पर अधिकार करने की बजाय उसके वश में हो जाने वाला भी मनुष्य ऐश्वर्य से भ्रष्ट हो जाता है।
अनेक लोगों को यह लगता है कि अगर अधिक धन आ गया तो
जैसे सारा संसार जीत लिया। इस भ्रम में अनेक लोग धन के कारण अनुशासहीनता पूर्वक
जीवन व्यतीत करने लगते हैं जिसका परिणाम यह होता है कि शीघ्र ही न केवल अपना
वैभव गंवाते हैं बल्कि कहीं कहीं उनको शारीरिक हानि भी झेलनी पड़ती हैं। जीवन में दैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति
के लिये धन का होना जरूरी है। अधिक धन है तो भी समाज में सम्मान प्राप्त होता है पर इसका आशय यह
कतई नहीं है कि अनुशासनहीनता बरती जाये। ऐसे ढेर सारे उदाहरण है जिसमें अनेक
धनपतियों की औलादें मदांध होकर ऐसे अपराधिक कार्य इस आशय से करती हैं कि उनके
पालक धन से कानून खरीद लेंगे। ऐसा होता भी है पर उसकी एक सीमा होती है जहां
उसका अतिक्रमण होता है वहां फिर सींखचों के अंदर भी जाना पड़ता है। इस समय ऐसा
दौर भी है जिसमें धनपति स्वयं और उनकी औलादें समाज में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिये अनुशासन हीनता दिखाते
हैं। धन उनकी आंखों बंद कर देता है और उनको यह ज्ञान नहीं रहता कि आजकल प्रचार माध्यम सशक्त हो गये
हैं जिनकी वजह से हर समाचार बहुत जल्दी ही लोगों तक पहुंचता है। भले ही यह प्रचार
माध्यम भी धनपतियों के हैं पर उनको अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिये सनसनीखेज खबरों की आवश्यकता होती है और
ऐसे में किसी धनी, प्रतिष्ठित या
बाहुबली द्वारा किसी प्रकार के अपराध की जानकारी मिलने पर उसे जोरदार ढंग से प्रसारित भी करते हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि अब वह समय चला
गया जब धन और वैभव का प्रदर्शन करने के लिये अनुशासनहीनता बरतना आवश्यक लगता था। आदमी के पास चाहे कितना भी धन हो उसे जीवन में
अनुशासन अवश्य रखना चाहिये। याद रहे धन की असीमित शक्ति है पर देह की सीमायें हैं और
किसी प्रकार की अनुशासनहीनता का दुष्परिणाम उसे ही भोगना पड़ता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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