हमारे यहां लोकसभा चुनाव 2014 की चुनाव प्रक्रिया चल रही है। मनुष्य समाज के
लिये एक राज्य व्यवस्था का होना आवश्यक है और इस समय पूरे विश्व में राजतंत्र की
जगह लोकतांित्रक प्रणाली अपनायी गयी जिसमेें राज्य व्यवस्था जनता से निर्वाचित
प्रतिनिधि देखते हैं। यह राज्य व्यवस्था
उन अधिकारियों के हाथ में होती है जो जनता से सीधी जुड़े नहीं होते पर जनप्रतिनिधियों
मेें राज्य प्रबंधन के ज्ञान के अभाव उन्हें अपना मुख बना लेते हैं। सारे काम
अधिकारी करते हैं और उनके लिखे शब्दों को जनप्रतिनिधि अपना स्वर देते हैं।
जनप्रतिनिधियों के पास प्रत्यक्ष अधिकार न होने से राज्य व्यवस्थाओं में अनेक
प्रकार के विरोधाभास उत्पन्न होते देखे गये हैं।
जनप्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह हैं पर उनके पास कार्यप्रबंध का कोई
प्रत्यक्ष अधिकार नहीं होता जिसे उन्हें अपने मातहत अधिकारियों पर निर्भर होना पड़ता
है जो उन्हें चाहे जैसा समझाते हैं उनको मानना पड़ता है। फिर हमारे देश में अंग्रेजी
राज्य व्यवस्था का ही अनुकरण हो रहा है जिसमें कागजी कार्यवाही जरूरत से अधिक होती
है। यह प्रणाली लंबी तथा उबाऊ होती है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि--------------अद्यात्काककः पुरीडार्श श्वा च लिह्याद्धविस्तथाः।स्वाम्यं च न स्वात्कस्मिश्चित्प्रवर्तेतधरोत्तरम्।।हिन्दी में भावार्थ-यदि राजा अपराधियों को दंड नहींदेगा तो कौआ पुरोडाश और श्वान हवि खायेगा। कोई किसी को स्वामी नहीं मानेगा तथा समाज उत्तम से मध्यम और उसके बाद अधम बन जायेगा।यदि न प्रणवेद्राजा दण्डं दण्ड्येष्श्वतन्द्रितः।शूले मत्स्यानिवापक्ष्यन्दुर्बलान्बलवत्तराः।।हिन्दी में भावार्थ-यदि अपराधियों को सजा देने में राजा सदैव सावधानी से काम नहीं लेता तो शक्तिशाली व्यक्ति कमजोर को उसी प्रकार नष्ट कर देते हैं जैसे बड़ी मछली छोटी को खा जाती है।
सबसे बड़ी समस्या अपराधियों को
दंड देने को लेकर खड़ी होती है। आधुनिक
सभ्यता के नाम पर अपराधियों को सरल दंड
दिये जाने लगे हैं तो न्यायिक प्रक्रिया को लेकर मानवाधिकार संगठन भी कम मखौलबाजी
नहीं करते। यह मानवाधिकार संगठन आमतौर से ऐसे अपराधियों का प्रचार करते दिखते हैं
जिन्होंने समाज के प्रति जघन्य अपराध कर अधिक बदनामी पायी होती है। कभी अप्रचारित अपराधी का पक्ष यह मानवाधिकार
संगठन कभी करते दिखते नहीं है। इतना ही नहीं भारत में तो सीमावर्ती प्रदेशों में
जो आतंकवादी संगठन कार्यरत हैं उनके लिये इन मानवाधिकार संगठनों में अत्यंत
सहानुभूति पाई जाती है पर देश के बिल्कुल
मध्य भाग में जो निर्दोष लोग परेशान हैं उनके लिये कभी इन लोगों ने आंदोलन नहीं
किया।
इधर यह भी देखा जा रहा है कि
अपराधियों में दंड की बात तो दूर प्रतिकूल कार्यवाही तक का भय नहीं रहा जिस कारण
देश में अपराध बढ़ते जा रहे हैं। हमारे देश में जब कोई अपराध बृहद रूप में प्रकट
होता है तो उसके लिये अलग से कानून बनाने की मांग होती है जबकि समस्या देश में
उचित ढंग से मौजूदा कानून लागू करने की है। जब देश में दंड व्यवस्था शक्तिशाली
नहीं होगी तब तक कोई सुखद कल्पना करना ही व्यर्थ है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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