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Saturday, October 05, 2013

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-विषैले भोजन की पहचान जरूरी (vishaile bhojan ki pahachan jaroori-according kautilya economics)




             आजकल खाने पीने की वस्तुओं में मिलावट अधिक हो गयी है। स्थिति यह है कि अनेक धूर्त लोग खाने के सामान अभक्ष्य तथा अपच सामान मिलाकर बेचते हैं।  उससे भी अधिक दृष्ट लोग हैं जो यह जानते हुए कि उनकी सामग्री विषाक्त है वह उसे खाने पीने के लिये ग्राहक या प्रयोक्त को बेचते हैं। अभी हाल ही में बिहार में मध्यान्ह भोजन खाकर अनेक छात्रों की मृत्यु हो गयी थी। इतना ही प्रचार माध्यमों-समाचार पत्रों तथा टीवी चैनलों-में ऐसे समाचार लगातार आते रहे हैं कि मध्यान्ह भोजन में खराब या विषाक्त खाना परसो जा रहा है।  प्रचार माध्यमों का यह प्रयास प्रशंसनीय है पर यह कहना पड़ता है कि उनका ध्यान देर से गया है। देश में सरकारी तथा गैर सरकारी कार्यक्रमों में गरीबों को खाना खिलाने के नाम पर जिस तरह की खुले में व्यवस्था होती है उसमें ऐसी ढेर सारी शिकायते पहले से ही रही हैं पर उन पर बिहार की घटना से पहले ध्यान नहंी दिया गया।  बहरहाल अब स्थिति यह है कि हम हर जगह इस यकीन के साथ भोजन नहीं कर सकते कि वह स्वच्छ है।  सामान्य लोगों को भोजन के दूषित होने की जानकारी सहजता से नहीं रहती जबकि हमारा अध्यात्मिक दर्शन इस विषय में अनेक प्रमाण दिये गये हैं।

कौटिल्य के अर्थशासत्र में बताया गया है कि

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भोज्यमन्नम् परीक्षार्थ प्रदद्यात्पूर्दमग्नये।

वयोभ्यश्व तत दद्मातत्र लिङ्गानि लक्षयेत्।।

       हिन्दी में भावार्थ-भोजन योग्य अन्न की परीक्षा करने के लिये  पहले अग्नि को दें और फिर पक्षियों को देकर उनकी चेष्टा का अध्ययन किया जा सकता है।

धूमार्चिर्नीलता वह्नेः शब्दफोटश्व जायते।

अन्नेन विषदिग्धेन वयसां मरणभवेत्।।

        हिन्दी में भावार्थ-यदि अग्नि से नीला धुआं निकले और फूटने के समान शब्द हो, अथवा पक्षी खाने के बाद मर जाये तो मानना चाहिये कि वह अन्न विषैला है।

अस्विन्नता मादकत्यमाशु शल्यं विवर्णता।

अन्नस्य विषदिगधस्य तथाष्मा स्निगधमेचकः।।

                 हिन्दी में भावार्थ-विष मिला हुआ भोजन आवश्यकता से अधिक गर्म तथा चिकना होता है।

व्यञ्जनस्याशु शुष्कत्वं क्वथने श्यामफेनता।

गंधस्पर्शरसाश्वव नश्यन्ति विषदूषाणात्।।

    हिन्दी में भावार्थ-बने हुए व्यंजन का जल्दी सुखता है। पकाते समय काला फेल उठना  विष दूषित अन्न के ही लक्षण है।

           बिहार के विद्यालय में विषाक्त अन्न परोसने की जो घटना हुआ थी उसमें खाना पकाने वाली महिला ने वहां की प्राचार्या को पकाते समय ही तेल या अन्न के विषाक्त होने की बात कही थी पर उसने ध्यान नहंी दिया।  गरीब महिला ने खाना पकाया और स्वय तथा वहां उपस्थित अपने तीन बच्चों को भी खिलाया। परिणाम यह हुआ कि यहाँ ं उसके मृत 22 बच्चों में उसके दो बच्चे भी थे। तीसरा बीमार हुआ और वह स्वयं भी बुरी तरह बीमार हुई।  रसोई बनाने वाली महिला संभवतः अधिक शिक्षित नहीं थी पर ग्रंामीण परिवेश की होने के कारण उसे भोजन के विषाक्त होने का संदेंह हो हुआ पर महिला प्राचार्य ने उसकी बात को नज़रअंदाज कर दिया गया । दरअसल देखा जाये तो भारतीय अध्यात्म में वर्णित सूत्रों की जानकारी जितनी ग्रामीण लोग रखते हैं उतनी शहरी क्षेत्र में अंग्र्रेजी शिक्षा पद्धति से ज्ञान संपन्न लोगों को नहीं रहती शायद यही कारण है कि उससे अधिक शिक्षित प्राचार्या ध्यान नहीं दे पायी।
     हम अक्सर कहा करते हैं कि गांवों में अशिक्षित लोग रहते हैं पर सच यह है कि भारतीय अध्यात्म से वह गहराई से जुड़े रहते हैं कि वह शहरी लोगों से अधिक ज्ञानी होते हैं।  इसके विपरीत शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग शिक्षित जरूर होते हैं पर ज्ञानी नहीं होते।  कोई बीमारी हो तो शहरी लोग आधुनिक चिकित्सा पद्धति की तरफ भागते हैं जबकि ग्रमीण परिवेश के लोग अचूक देशी नुस्खे आजमाते हैं और कभी दूसरों का भी सुझाते हैं।  देखा जाये तो शहरी लोगों में बीमारी का अनुपात अधिक ही रहता है। दूसरी बात यह भी है कि शहरी क्षेत्रों में दूषित और विषाक्त पदार्थ अधिक बिकते हैं क्योंकि वहां के लोगों को उसकी पहचान नहीं है।  अतः शहरी क्षेत्रों में ही दूषित तथा पवित्र खाद्य पदार्थै के प्रति चेतना लाने का प्रयास करना चाहिये।

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 


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