समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, April 09, 2013

विदुर नीति-दूसरों पर दोषारोपण करने वाला स्वयं भी सो नहीं पाता (vidur neeti-doosron par dosharopan karane wala swyan bhe so nahin paata)

    सामान्य मनुष्य को यह लगता जरूर है कि दुष्ट प्रकृति के लोग बहुत खुश रहते हैं पर यह सच नहीं होता। दूसरे को सताने वाला या अनावश्यक ही दूसरे पर  दोषारोपण करने  वाला कभी स्वयं भी सुखी नहीं रहता। जब कोई मनुष्य दूसरे पर दोषारोपण करते हुए उसके  अहित की बात सोचता है तब वह अपने अंदर भी बेचैनी का भाव लाता है।  अनेक बार देखा गया है कि जब कोई मनुष्य स्वयं  अपराध या  गलती करता है तब वह उसका दोष स्वयं न लेकर दूसरे पर मढ़ता है।  उसके झूठे दोष से पीड़ित व्यक्ति की जो आह निकलती है वह निश्चित रूप से उस पर दुष्प्रभाव डालती है। यह अलग बात है कि इस आह का दुष्प्रभाव तत्काल न दिखाई दे पर कालांतर में उसका परिणाम अवश्य प्रकट होता है।
विदुर नीति में कहा गया है कि
---------------
न च रात्रौ सुखं शेते ससर्प वेश्मनि।
वः कोपयति निर्दोषं सदोषोऽभ्यन्तरे जनम्।।
    हिन्दी में भावार्थ-स्वयं दोषी होते हुए जो दूसरे पर दोषापरोपण करता है वह उसी तरह रात को चैन की नींद नहीं ले पाता जैसे सांप वाले घर में रहने वाला आदमी सो नहीं पाता।
येषु दृष्टेषु दोषः स्तद् योगक्षेमस्य भारत।
सदा प्रसादन तेषां देवतानामिवायरेतफ।।
       हिन्दी में भावार्थ- जिन पर दोषापरोपण करने से स्वयं के सुख में बाधा आती है उन लोगों को देवता की तरह प्रसन्न रखना चाहिये।
            सच बात तो यह है कि दूसरे पर दोषारोपण करने वाला व्यक्ति रात में उसी तरह नहीं सो पाता जैसे कि सांप वाले घर में रहने वाला नहीं सो पाता।  इतना ही नहीं जिन लोगों पर दोषारोपण करने से मन में कष्ट होता है उन्हें देवता की तरह मानते हुए  उनकी पूजा करना चािहये।  आजकल हम जो समाज के लोगों में बढ़ता मानसिक तनाव देख रहे हैं उसका कारण यह भी है कि लोग अपनी गल्तियों के लिये दूसरे पर दोष लगाते हैं।  इससे बचने का एकमात्र उपाय यही है कि समय समय पर आत्ममंथन करते रहें।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका 
६.अमृत सन्देश  पत्रिका

No comments:

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें