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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, April 20, 2013

मनुस्मृति से संदेश-पैरों को गीला कर भोजन करना चाहिए (manu smriti se sandesh-pairon ko geela ka bhojan karna chahiye)

     
      जीवन में लंबे समय तक यदि प्राण धारण करने की इच्छा जिसके मन में हैं तो वह भले ही हमेशा साहस दिखायें पर कभी दुस्साहस न करे।  आजकल हम देख रहे हैं कि धन तथा सुविधाओं की प्रचुर उपलब्धता ने लोगों के  मन तथा मस्तिष्क का हरण लिया है।  अनेक बड़े शहरों में नई नई महंगी गाड़ियां खरीदने वाले अनेक युवक रात्रिकाल में आपसी प्रतियोगिता करते हुए तीव्र गति से उनको दौड़ाते हैं।  इस कारण अनेक दुर्घटनायें होती रहती हैं। इसमें कार चालक स्वयं दुर्धटनाग्रस्त होता है या मार्ग पर चल रहे राहगीर उनका शिकार हो जाते हैं।  इस तरह की दुर्घटनाओं के पीछे कोई तर्क ढूंढना व्यर्थ लगता है।  सीधी बात कहें तो माया हमेशा आदमी की मति भ्रष्ट करती है। ऐसी घटनायें  यह साबित करती है कि खाना पचाने का मंत्र तो है पर धन पचाने का मंत्र नहीं है। 
      मनुस्मृति में कहा गया है कि
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      आर्द्रपादस्तु भुञ्जोत नार्द्रपादस्तु संविशेत्।
      आर्द्रपादस्तु भुञ्जानोःदीर्घमायुरवाप्नुयात्।।
       हिन्दी में भावार्थ-पैरों को गीला करके भोजन करना चाहिये मगर गीले पैर कभी सोना नहीं चाहिये। गीले पैर करके भोजन करने वाला लंबी आयु प्राप्त करता है।
   अचक्षुर्विषयं दुर्ग न प्रपद्येत कर्हिचित्।
   न विण्मूत्रमुदीक्षेत बाहुभ्यां नदी तरेत्
           हिन्दी में भावार्थ-आंखों से न दिखने वाले स्थान पर कभी पांव नहीं रखना चाहिये। खप्पर, कपास की गुठली तथा भूसे के ढेर पर कभी नहीं बैठना चाहिये।  कभी भी बाहुबल से नदी पार करने का प्रयास भी नहीं करना चाहिये।
       पैरों को गीला कर भोजन ग्रहण करने से जीवन में आयु बढ़ती है। उनको गीला कर सोना नहीं चाहिये। कहने का अभिप्राय यह है कि हमारे पास भोजन के पचाने के अनेक उपाय हैं पर धन संपदा आने पर अपने मन तथा मस्तिष्क पर नियंत्रण रखने कोई भी सूत्र नहीं है। जिनके पास धन आता है  वह दुस्साहसी हो जाते हैं। मनोरंजन की भूख उनको अक्ल का अंधा बना देती है।  हमने अनेक ऐसी घटनायें भी देखी हैं कि वर्षा के दिनों में कुछ  लोग समूह बनाकर पिकनिक मनाने जाते हैं। उनको इस बात का अनुमान नहीं होता कि नदी  या तालाब में पानी कहां किस स्तर पर है पर वह उसमें कूद कर नहाते हैं।  वह अपने साथ गये लोगों में अपना प्रभाव दिखाने के लिये ऐसे जल स्त्रोतों में तैरने का प्रयास करते हुए अपने लिये संकट को  आमंत्रण देते हुए देखे जा सकते हैं।  इसमें केाई संदेह नहीं है कि लंबी आयु का मोह सभी को होता है पर इसके लिये संयम, संतोष, धैर्य के साथ तीक्ष्ण बुद्धि होना आवश्यक है।  यह तभी हो सकता है जब मनुष्य में आध्यात्म का ज्ञान हो। हमारे देश में मनुस्मृति को नये युग में अपठनीय मानकर तिरस्कृत कर दिया गया है।  उसमें अनेक दोष बताये गये हैं। हम उन पर यहां चर्चा नहीं करना चाहते क्योंकि इससे विवाद बढ़ता रहा है।  मूल बात यह है कि उसमें जो जीवन से सम्बंधित उचित संदेश है उन पर चिंत्तन और मनन करते रहना चाहिये।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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