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Sunday, October 09, 2011

मनुस्मृति से संदेश-अपराध कभी उपवास करने से नहीं छिपते (apradh aur upawas or crime and fast-manusmriti

    हमारे देश में धर्मभीरु लोगों की संख्या बहुत है पर तत्वज्ञानियों कहीं कहीं देखने को मिलते हैं। अब तो देश में पर्वों और त्यौहारो के अवसर पर नाच गानों की ऐसी धूम मचती है गोया कि पूरा देश ही धर्ममय हो रहा है। देखा जाये तो धर्म एक दिखाने वाली शय बन गया है और उसका आचरण से संबंध मानने वाला कोई कोई विरला ही होता है। धर्म के नाम पर जहां कुछ लोग समाज का दोहन करते हैं तो कुछ अपनी जेब से पैसा खर्च कर अपने अंदर ही धार्मिक होने का अहसास भी खरीदना चाहते हैं। इधर देश में भ्रष्टाचार के कारण जहां कालाधन बढ़ा है तो उसे सफेद करने का मार्ग भी धर्म ही बन गया है। यही कारण है कि आजकल तो ऐसा दिख रहा है कि हमारा पूरा देश ही धार्मिक है और यहां सभी निर्मल हृदय के लोग रहते हैं।
हमारे धर्मग्रथों में यह बात अनेक जगह लिखी हुई है कि कुपात्र को दिया गया दान बेकार है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि अगर आचरण में निर्मलता और हृदय में शुद्धता नहीं है तो चाहे कितनी भी भक्ति की जाये वह फलीभूत नहीं होती।
इस विषय में मनुस्मृति में कहा गया है कि
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यथा पलवेनीपलेन निमज्जत्युदके तरन्।
तथा निमज्जतोऽधस्तादज्ञो दातृप्रतीच्छकी।
         ‘‘जिस तरह पानी पत्थर की नौका पर चलने वाला व्यक्ति नाव के साथ डूब जाता है उसी तरह दान लेने वाला कुपात्र या अज्ञानी तथा उसे दान देने वाला दोनों ही नरक में डूब जाते हैं।
न धर्मस्यापदेशेन पापं कृत्वा व्रतं चरेत्।
व्रतेन पापं प्रच्छाह्य कुर्वन् स्त्री शूद्रदमनम्।।
        ‘‘पाप करने के बाद उसे छिपाने के लिये व्रत या उपवास करना व्यर्थ है। इस तरह के व्रत से अज्ञानियो को बहलाया जा सकता है पर बुद्धिमान लोग उसकी सच्चाई जानते हैं।’’
          कहने का अभिप्राय यह है कि व्रत, उपवास, जाप, ध्यान, स्मरण और दान जैसी अध्यात्मिक प्रक्रियाओं के पालन में मनुष्य का आचरण अच्छा होने से न तो अध्यात्मिक न ही सांसरिक लाभ मिलता है। न मन में शांति होती है न ही लोग सम्मान करते हैं। स्पष्टतः धर्म केवल दिखाने के लिये नहीं होता बल्कि आचरण की श्रेष्ठता समाज के सामने उसे प्रमाणित करती है। उसी तरह हृदय की शुद्धता मनुष्य को अपने धार्मिक होने का सुखद अहसास होता है।
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संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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