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Saturday, October 22, 2011

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-तत्वज्ञानियों का सामान्य लोगों से मेल संभव नहीं (tatava gyaniyon ka samanya logog se mel sanbhav nahin-economics of kautilya)

              आमतौर से सामान्य मनुष्य अपने संपर्क बढ़ाने और संबंधों का विस्तार करने को उत्सुक रहते हैं। दूसरे लोग चिकनी चुकनी बातों से बहकाते हैं पर यह बात सभी की समझ में नहीं आती। मुख्य बात यह है कि अपने गुणों के अनुरूप ही संपर्क और संबंध बनाने चाहिए इस सिद्धांत को बहुत कम लोग जानते हैं। श्रीमद्भागवत गीता में गुण तथा कर्म विभागों का संक्षिप्त पर गुढ़ वर्णन किया गया है। उससे हम मनुष्य का मनोविज्ञान अच्छी तरह समझ सकते हैं। आम तौर से पहनावे, रहन सहन, आचार विचार तथा कार्य करने के तरीके से सभी लोग एक जैसे दिखाई देते हैं। इस तरह हर मनुष्य का बाह्य मूल्यांकन किया जा सकता है। इस आधार पर संबंध या संपर्क बनाना ठीक नहीं है। क्योंकि संबंधों का विस्तार या संपर्क बढ़ने पर जब किसी के सामने अपने साथी का आंतरिक रूप विचार और संकल्प प्रतिकूल मिलता है तो मनुष्य को भारी निराशा होती है। किसी दूसरे व्यक्ति से संबंध बढ़ाने या संपर्क का विस्तार करने से पहले उसके विचार तथा संकल्प जानना आवश्यक है। वह चाहे कितनी भी लच्छेदार बातें करे पर उसकी क्षमता का आंकलन कर उसका प्रमाण भी लेना चाहिए। विपरीत गुणों तथा कर्म वाले लोगों से संपर्क बहुत दूरी तक नहंी चलते और कभी कभी तो दुष्परिणाम देने वाले भी साबित होते है।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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उत्तमाभिजनोपेतान् न नीचैः सह वर्द्धयेत्।
कृशीऽपि हिविवेकज्ञो याति संश्रवणीयताम्।।
           ‘‘सज्जन या उत्तम गुणों वाले लोगों का नीच तथा अज्ञानी लोगों से मेल नहीं हो सकता। कृशता को प्राप्त विवेकी पुरुष अंततः राज्य का संरक्षण पा लेता है, इसमें संशय नहीं है।
निरालोके हि लोकेऽस्मिन्नासते तत्रपण्डिताः।
जात्यस्य हि मणेयंत्र काचेन समता मता।।
        ‘‘ज्ञानी लोग उन अज्ञानी लोगों के पास नहीं ठहर पाते जो अज्ञान के अंधेरे में रहते हैं। जहां मणि हो वहां भला कांच का क्या काम हो सकता है? वहां मणि के साथ कांच जैसा व्यवहार ही किया जाता है।’’
        इन संपर्कों और संबंधों में यह बात बहुत महत्वपूर्ण होती है कि लोगों का बौद्धिक स्तर क्या है? इसमें कोई शक नहीं रखना चाहिए कि मनुष्य के धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक तथा कार्यकारी स्थितियों से उसके विचार, संकल्प, तथा कर्म प्रभावित होते हैं। इन्हीं आधारों से संस्कारों का निर्माण भी होता है। कुछ लोग बड़ी चालाकी से इसे छिपाते हैं तो कुछ लोगों की सक्रियता इतनी रहती है कि उनका आंतरिक रूप समझने का अवसर दूसरों को नहीं मिलता। सांसरिक विषयों की चतुराई ज्ञान नहीं होता बल्कि अध्यात्मिक ज्ञान ही असली प्रमाण होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि अपने संपर्क के लोगों का अध्यात्मिक स्तर जानना अत्यंत आवश्यक है। ज्ञानी लोगों की अज्ञानी लोगों से दोस्ती बहुत कम निभती है। अज्ञानी लोग सांसरिक विषयों के अंधेरे कुंऐं में डूबे रहना पसंद करते हैं और ज्ञानी लोगों की बात उनके लिये बकवास भर होती है। अतः किसी भी प्रकार का संबंध स्थापित करने से पहले दूसरे की प्रवृत्तियों का प्राप्त करना आवश्यक है। स्वयं गुणी हैं तो इस बात से निराश नहीं होना चाहिए कि समाज में उनका सम्मान नहीं हो रहा है बल्कि यह विचार पक्का रखना अच्छा है कि उन गुणों से हमारी रक्षा हो रही है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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