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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, January 08, 2011

योग्य लोग किसी की परवाह नहीं करते-हिन्दी चिंतन आलेख (yogya log parvah nahin karte-hindu chitan lekh)

इस संसार में कलुषित वाणी बोलने वालों की कमी नहीं है। उससे भी अधिक संख्या तो उन लोगों की है जो दूसरे के दुःख पर हंसते हैं। किसी की परेशानी आने पर उसका मजाक उड़ाते हैं। अगर हम देखें तो आम इंसान सबसे ज्यादा इसी बात पर चिंतित रहते हैं कि कहीं उनके पास दुःख न आये। इसलिये नहीं कि वह उससे लड़ नहीं सकते बल्कि कहीं अपने ही लोग उनका मजाक न उड़ायें यही चिंता उनको खाये जाती है।  इस विषय पर नीति विशारद विदुर कहते हैं कि
परश्चेदेनभिविध्येत वाणीमुंशं सुतीक्ष्यौरनलार्कदीप्तैः।
स विध्यमानोऽप्यतिदहृामानो विद्यात् कविः सुकृतं में दधाति।।
"विद्वान मनुष्य अन्य व्यक्ति के मुख से अपने प्रति वाग्बाण तथा कटुशब्दों से चोट पहुंचाने पर वेदना होने के बावजूद यह सोचकर मौन हो जाते हैं कि वह मेरे ही पुण्यों को पुष्ट कर रहा है।
यदि सन्तं सेवति यद्यसन्तं तपस्विनं यदि वा स्तेनमेव।"
वासो तथा रंगवशं प्रवानि तथा स तेषां वशमभ्युवैति।।
जिस तरह किसी कपड़े को रंगा जाये तो वह भी उसी रंग का हो जाता है। उसी तरह सज्जन पुरुष दुष्ट से संगत करने पर उस जैसा प्रभाव हो जाता है।
तत्वज्ञानी तथा जीवन रहस्य को समझने वाले विद्वान इस प्रकार के भय से मुक्त होते हैं। वह जानते हैं कि मनुष्य मन की यह स्थिति यह है कि वह अपने दुःख से कम दुखी बल्कि दूसरे के सुख से अधिक सुखी होता है। लोभ, लालच तथा अहंकार से भरा मनुष्य कभी संतुष्ट या सुखी नहीं रह सकता इसलिये वह दूसरे के दुःख तथा क्षोभ में अपने लिये संतोष ढूंढता है। इतना ही नहीं अनेक लोग तो दूसरों की रचनात्मक प्रवृत्तियों का भी उपहास उड़ाते हैं।
यही कारण है कि विद्वान तथा समझदार लोग दूसरों की आलोचना की परवाह तथा प्रशंसा का लोभ त्यागकर अपने सत्य पथ पर बढ़ते जाते हैं। उनको किसीके मन अपमान कि चिंता नहीं होती और वह अपने कर्म में लीन रहते हैं।
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संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com

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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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1 comment:

vandana gupta said...

उत्तम विचार्।

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