हमारे देश में जाति पाति को लेकर झगड़ा बहुत पुरानी समस्या है। दरअसल हम यह मानते हैं कि हर जाति दूसरी जाति पर शासन करना चाहती है और दूसरे को हेय मानती है। वैसे देखा जाये तो जाति पाति न भी हो तो भी लोग अन्य प्रकार से समूहों में बंटकर एक दूसरे को दबाना चाहते हैं। झूठे अहंकार की वजह से झगड़ा होता है पर यह समस्या अंततः आर्थिक असुरक्षा तथा भूमि संबंधी विवादों से उपजे तनाव का परिणाम है। लोगों को जाति के नाम पर समूह बनाने में सुविधा होती है इसलिये वह अपने स्वाथों की पूर्ति के लिये एक समूह बनाकर दूसरे से अहंकारवश झगड़ा करते हैं।
प्राचीनकाल में भारत में जाति पाति व्यवस्था थी पर उसकी वजह से समाज में कभी विघटन का वातावरण नहीं बनता था। कालांतर में विदेशी शासकों का आगमन हुआ तो उनके बौद्धिक रणनीतिकारों ने यहां फूट डालने के लिये इस जाति पाति की व्यवस्था को उभारा। इसके बाद मुगलकाल में जब विदेशी विचारधाराओं का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा था तब सभी समाज अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिये संगठित होते गये जिसकी वजह से उनमें रूढ़ता का भाव आया और जातीय समुदायों में आपसी वैमनस्य बढ़ा जिसकी वजह से मुगलकाल लंबे समय तक भारत में जमा रहा। अंग्रेजों के समय तो फूट डालो राज करो की स्पष्ट नीति बनी और बाद मेें उनके अनुज देसी वंशज इसी राह पर चले। यही कारण है कि देश में शिक्षा बढ़ने के साथ ही जाति पाति का भाव भी तेजी से बढ़ा है। जातीय समुदायों की आपसी लड़ाई का लाभ उठाकर अनेक लोग आर्थिक, सामजिक तथा धार्मिक शिखरों पर पहुंच जाते है। यह लोग बात तो जाति पाति मिटाने की करते हैं पर इसके साथ ही कथित रूप से जातियों के विकास की बात कर आपसी वैमनस्य भी बढ़ाते है।
प्राचीनकाल में भारत में जाति पाति व्यवस्था थी पर उसकी वजह से समाज में कभी विघटन का वातावरण नहीं बनता था। कालांतर में विदेशी शासकों का आगमन हुआ तो उनके बौद्धिक रणनीतिकारों ने यहां फूट डालने के लिये इस जाति पाति की व्यवस्था को उभारा। इसके बाद मुगलकाल में जब विदेशी विचारधाराओं का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा था तब सभी समाज अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिये संगठित होते गये जिसकी वजह से उनमें रूढ़ता का भाव आया और जातीय समुदायों में आपसी वैमनस्य बढ़ा जिसकी वजह से मुगलकाल लंबे समय तक भारत में जमा रहा। अंग्रेजों के समय तो फूट डालो राज करो की स्पष्ट नीति बनी और बाद मेें उनके अनुज देसी वंशज इसी राह पर चले। यही कारण है कि देश में शिक्षा बढ़ने के साथ ही जाति पाति का भाव भी तेजी से बढ़ा है। जातीय समुदायों की आपसी लड़ाई का लाभ उठाकर अनेक लोग आर्थिक, सामजिक तथा धार्मिक शिखरों पर पहुंच जाते है। यह लोग बात तो जाति पाति मिटाने की करते हैं पर इसके साथ ही कथित रूप से जातियों के विकास की बात कर आपसी वैमनस्य भी बढ़ाते है।
भारत भूमि सदैव अध्यात्म ज्ञान की पोषक रही है। हर जाति में यहां महापुरुष हुए हैं और समाज उनको पूजता है, पर कथित शिखर पुरुष अपनी आने वाली पीढ़ियों को अपनी सत्ता विरासत में सौंपने के लिये समाज में फूट डालते हैं। जो जातीय विकास की बात करते हैं वह महान अज्ञानी है। उनको इस बात का आभास नहीं है कि यहां तो लोग केवल ईश्वर में विश्वास करते हैं और जातीय समूहों से बंधे रहना उनकी केवल सीमीत आवश्यकताओं की वजह से है।
कहु नानक सुनि रे मना गिआनी ताहि बखानि।।’
जात पात पर गुरुग्रंथ साहिब में प्रभावपूर्ण उल्लेख मिलता है
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जाति का गरबु न करि मूरख गवारा।
इस गरब ते चलहि बहुतु विकारा।।
"गुरुवाणी में मनुष्यों को संबोधित करते हुए कहा गया है कि ‘हे मूर्ख जाति पर गर्व न कर, इसके चलते बहुत सारे विकार पैदा होते हैं।"
इस गरब ते चलहि बहुतु विकारा।।
"गुरुवाणी में मनुष्यों को संबोधित करते हुए कहा गया है कि ‘हे मूर्ख जाति पर गर्व न कर, इसके चलते बहुत सारे विकार पैदा होते हैं।"
‘हमरी जाति पाति गुरु सतिगुरु’
"गुरुग्रंथ साहिब में भारतीय समाज में व्याप्त जाति पाति का विरोध करते हुए कहा गया है कि हमारी जाति पाति तो केवल गुरु सत गुरु है।"
‘भै काहू को देत नहि नहि भै मानत आनि।"गुरुग्रंथ साहिब में भारतीय समाज में व्याप्त जाति पाति का विरोध करते हुए कहा गया है कि हमारी जाति पाति तो केवल गुरु सत गुरु है।"
कहु नानक सुनि रे मना गिआनी ताहि बखानि।।’
"गुरुग्रंथ साहिब के अनुसार जो व्यक्ति न किसी को डराता है न स्वयं किसी से डरता है वही ज्ञानी कहलाने योग्य है।"
जातीय समूहों से आम लोगों के बंधे रहने की एक वजह यह है कि यहां सामूहिक हिंसा का प्रायोजन अनेक बार किया जाता है ताकि लोग अकेले होने से डरें। इस समय देश में बहुत कम ऐसे लोग होंगे जो अपने जातीय समुदायों के शिखर पुरुषों से खुश होंगे पर सामूहिक हिंसक घटनाओं की वजह से उनमें भय बना रहता है। आम आदमी में यह भय बनाये रखने के लिये निंरतर प्रयास होते हैं ताकि वह अपने जातीय शिखर पुरुषों की पकड़ में बने रहें ताकि उसका लाभ उससे ऊपर जमे लोगों को मिलता रहे। मुश्किल यह है कि आम आदमी में भी चेतना नहीं है और वह इन प्रयासों का शिकार हो जाता है। इसलिये सभी लोगों को यह समझना चाहिए कि यह जाति पाति बनाये रखकर हम केवल जातीय समुदायों के शिखर पुरुषों की सत्ता बचाते हैं जो दिखाने के लिये हमदर्द बनते हैं वरना वह तो सभी अज्ञानी है। अपने से बड़े से भय खाने और और अपने से छोटे को डराने वाले यह लोग महान अज्ञानी हैं और हमारे अज्ञान की वजह से हमारे सरताज बन जाते है।
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संकलक लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीपhttp://teradipak.blogspot.com
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