समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, December 09, 2010

मनोरंजन के नाम पर मानसिक विलासिता से बचें-हिन्दी लेख (manoranjan ke nam par vilasita-hindi lekh)

न्यूजीलैंड को भारत ने लगातार तीसरा एकदिवसीय क्रिकेट मैच में क्या हरा दिया कि जैसे भारतीय प्रचार माध्यमों की लॉटरी लग गयी। बस गाये जा रहा है कि
‘‘उस खिलाड़ी के कंधों में आई ताकत से सब भौचक्के।’
‘उसकी स्पिन में जादू कहां से आया।’
‘अब वह धनी बन गया।’ आदि आदि।
एक मज़े की बात यह रहती है कि अगर आप कभी धंटे के मध्य-यानि साढ़े छह, सात या आठ बजे-घर पहुंच कर टीवी खोलें तो आपको एक जैसे ही प्रसारण मिलेंगे। क्रिकेट मैच पर चर्चा, किसी टीवी कार्यक्रम के (कु)पात्र का बखान या किसी बड़ी हस्ती का जन्म दिन! ऐसे में यह शक होता है कि सभी चैनल अलग अलग हैं। बल्कि ऐसा लगता है कि सभी टीवी चैनल किसी एक इशारे पर काम करते हैं। तय बात है कि विज्ञापन तो सभी कंपनियां देती हैं पर उनका निर्माण तथा प्रसारण कुछ बड़ी संस्थाओं को पास होता है जो शायद इन चैनलों को बता देती हैं कि उनके मॉडल एक ही समय सभी चैनल पर दिखाये जाने चाहिए ताकि आम दर्शक इस चैनल से उस चैनल पर जाये पर रहे हमारी पकड़ में। अनेक लोग हिन्दी अंतर्जाल पर ऐसे हैं जो आये दिन इन प्रचार माध्यमों की कुछ कथित शख्सियतों पर आक्षेप करते हुए यह दुआ करते हैं कि उनको अक्ल आये। वह गलत फहमी में हैं। दरअसल कथित रूप से जो चैनल पत्रकार हैं वह ऐसे प्रारूप में काम रहे हैं जो राज्य, अर्थ तथा कला के क्षेत्र में बरसों से निर्धारित कर दिया गया है। अब उसमें बदलाव इसलिये नहीं आ पा रहा क्योंकि उसके लिये जिस अध्यात्म ज्ञान या चिंतन की जरूरत है जिससे कोई जुड़ना नहंी चाहता। कुछ नया करने का उनमें आत्मविश्वास नहीं है। आधुनिक शिक्षा से सुसज्तित जो शिखर पुरुष अपनी जगह जमे हैं उनमें अध्यात्मिक शक्ति का अभाव है। उल्टे वह भारतीय अध्यात्म ज्ञान को हेय बताकर वाहवाही लूटते हैं।
भारत का समूचा प्रचार तंत्र एक तरह से हमेशा ही पूंजीपतियों और दलालों के हाथ में रहा है। जब रेडियो और टीवी पर केवल सरकारी एकाधिकार था तब समाचार पत्र पत्रिकाओं भी वही चलती थीं जो पूंजपतियों के हाथों में थी। अनेक संघर्षशील लोगों ने छोटे अखबार चलाने का प्रयास किया पर आर्थिक समर्थन के अभाव में नाकाम रहे। बड़े समाचार पत्र पत्रिकाओं शिखर पदों भी काम भी वही लोग करते जो लिखने पढ़ने के साथ ही मालिकों के अन्य व्यवसायिक कामों में भी सहयोग कर सकते थे। अधिकतर प्रसिद्ध समाचार पत्र पत्रिकाओं के मालिक अपने प्रकाशनों सहारे ही अन्य व्यवसायिक भी करते हैं। तय बात है उनको प्रकाशन उद्योग के कारण रुतवे का लाभ मिलता है। अब टीवी और रेडियो क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी है पर उनके कर्ताधर्ता भी पूंजीपति हैं। ऐसे में कम से कम हिन्दी का प्रचारतंत्र पूरी तरह से राज्य तथा पूंजी के तयशुदा प्रारूप में काम करता रहेगा। इसमें बदलाव संभव नहीं है।
अभी 2-जी स्पैक्ट्रम घोटाले में यह बात खुलकर सामने आ गयी है कि राजकीय पदों पर बैठे तथा पूंजीक्षेत्र के शिखर पुरुषों के बीच दलाली का काम कथित रूप से पत्रकारों ने किया है। यह बात चौंकाती नहीं है क्योंकि इसके अनुमान तो पहले से ही थे। ऐसे में जो लोग इन प्रचार माध्यमों में सुधार की आशा करते हैं उनको निराश होना पड़ेगा। आखिर यह कैसे संभव है कि टीवी या समाचार पत्र पत्रिकाओं के संपादक अपने पूंजीपतियों के बरसों पूर्व तय मार्गदर्शक सिद्धांतों का उल्लंघन कर जायें। पूंजीपतियों की स्थिति यह है कि जहां से धन मिलता है वहां अपने संबंध अच्छा बनाता है। यही कारण है कि जब हम देश के आतंकवाद के लिये पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हैं तब खाड़ी देशों के उसमें सहयोग को अनदेखा करते देते हैं क्योंकि वहां भारतीय पूंजीपतियों के आर्थिक संपर्क हैं। ऐसे एक नहीं अनेक प्रमाण हैं कि भले ही खाड़ी देश पाकिस्तान को पसंद करें या न करें पर भारत विरोध के लिये वह उनका एक बहुत बड़ा हथियार है। नंगा भूखा पाकिस्तान भारत में आतंकवाद का प्रायोजन जिस पैसे पर करता है उसका स्त्रोत बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सभी को पता है। स्थिति यह है कि भारतीय टीवी चैनल और फिल्मों में पाकिस्तानियों को प्रवेश भी मिल जाता है और यकीनन इसके लिये कहीं न कहीं भारत के बाहर के प्रायोजक पाकिस्तानी आकाओं को प्रसन्न करते हैं।
कुछ बुद्धिजीवी और कलाकार तो अपने पाकिस्तान प्रेम के कारण ही मशहूर हैं। वह इसलिये नहीं कि उसकी कोई उनसे वास्तविक हमदर्दी है बल्कि उनके आर्थिक आका उनको बाध्य करते हैं या संभव है उनको प्रसन्न करने के लिये वह ऐसा करते हों। मज़े की बात यह है कि ऐसे लोग सार्वजनिक आलोचनाओं को भी पी जाते हैं। उनको पता है कि देश में प्रचारतंत्र का सक्रिय एक तबका कहीं न कहीं उनके साथ है जिनके आर्थिक स्त्रोत उन जैसे ही हैं।
अभी हाल ही में वाराणसी में हुए विस्फोट में दुबई और शारजाह में रह रहे आतंकवादियों का नाम आ रहा है, पर क्या किसी चैनल ने इन देशों के विरुद्ध एक शब्द भी कहा है? विकीलीक्स ने बताया कि एक पाकिस्तानी आतंकवादी सऊदी अरब से धर्म के नाम पर पैसा लेकर आतंकवादियों पर खर्च करता है? क्या किसी चैनल ने सऊदी अरब पर कोई आक्षेप किया। नहीं, क्योंकि पूंजीपतियों के इन खाड़ी देशों में आर्थिक संपर्क हैं और प्रचार तंत्र अंततः उनके ही हाथों में हैं। उनको नाराज नहीं करना है, इस बात की परवाह कोई शुद्ध पत्रकार नहीं करेगा पर दलाल पत्रकार कभी भी पाकिस्तान से आगे अपनी बात नहीं करेंगे। मुश्किल यह है कि पूंजी, विद्वान समाज, राज्य तंत्र में कुछ ऐसे लोग हैं जो शुद्ध पत्रकारों को भाव नहीं देते। उनको लगता है कि कहीं उनके आर्थिक पिता कहीं नाराज न हो जायें। सभी चैनल और अखबारों में अच्छे पत्रकार हैं। अपना काम कर रहे हैं पर जब शिखर पर बैठे पत्रकारों के नाम आये तो यह प्रश्न उठता ही है कि क्या इस देश में विदेशी विचाराधारा, संस्कृति और शिक्षा के प्रचार में क्या ऐसे ही लोग हैं जिनका उद्देश्य अपना हित साधना है न कि समाज में चेतना लाना। जब शिखर पर बैठे लोग ऐसे हों तो दूसरी पंक्ति के कर्मियों से स्वतंत्रता से काम करने की आशा करना बेकार है। क्रिकेट, टीवी कार्यक्रमों के अंशों तथा फूहड़ मज़ाक के सहारे चल रहे भारतीय चैनलों से यह आशा करना भी बेकार है कि वह अपना रास्ता बदलेंगे क्योंकि उनके आर्थिक आधार फिलहाल तो बदलने से ही रहे। यही कारण है कि वह हिन्दी की आड़ में अंग्रेजी, संस्कृति की आड़ में विदेशी कुचक्र तथा शिक्षा के नाम पर नंगापन परोसते जा रहे हैं। हम उनसे कोई आशा नहीं करते इसलिये लोगों से यही कहते हैं कि अपने मनोरंजन की भूख को कम करो। नंगे दृश्य या गाली सुनकर आनंद उठाने से अच्छा है तो स्वयं ही बैठकर कोई गाना गुनागुनाने लगो, या बिना कारण पार्क में टहलने चले जाओ। किसी भी हालत में मनोरंजन के नाम पर मानसिक विलासिता से बचो। सुबह योग साधना करें। दिन में ध्यान लगायें और शाम को कोई अध्यात्मिक पत्रिका पढ़ें। आवश्यक न हो तो गाड़ी की बजाय साइकिल की सवारी भी करो ताकि अपनी सक्रियता का आनंद मिले। तब दूसरे की सक्रियता या एक्शन में आनंद उठाने की इच्छा जाती रहती है। अपना चिंत्तन  करो ताकि दूसरे की राय पर विचार कर सको। जब किसी का अंधानुकरण नहीं करोगे तो कोई अंधेर में रहना सीख लोगे तो कोई  चिराग बेचने भी नहीं आयेगा।
______________________________

संकलक एवं संपादक-दीपक    'भारतदीप', ग्वालियर 
author aur writter-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

४.हिन्दी पत्रिका 
५.ईपत्रिका
६.दीपकबापू कहिन
७.शब्द पत्रिका
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

No comments:

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें