मनुस्मृती के अनुसार
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यद्यत्परवशं कर्म तत्तद्यलेन वर्जयेत्।
यद्यदात्मवशं तु स्यात्तत्तत्सेवेत यत्नतः।
हिन्दी में भावार्थ-जिस काम के लिये दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है उनका त्याग कर देना चाहिये तथा अपने हाथ से ही संपन्न होने वाले अनुष्ठान करना चाहिए।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जीवन में चाहे कोई भी कार्य हो उसे पूरा करने से पहले अपने सामर्थ्य, साधन तथा सहयोगियों की उपलब्धता पर विचार करना चाहिये। अनेक लोग किसी भी कार्य में परिणाम की अनिश्चितता के बावजूद उसे इस आशा से प्रारंभ करते हैं कि उनका ‘भाग्य’ साथ देगा या फिर ऊपर वाले की कृपा होगी-यह अंधेरे में तीर चलाने जैसा है। संभव है कुछ लोगों का निशाना लग जाये पर सभी को ऐसा सौभाग्य नहीं मिलता। अत: जहाँ तक हो सके ऐसा काम प्रारंभ करना चाहिए जिसकी पूर्णता अपने हाथ पर ही अधिक निर्भर हो।-----------------------------
यत्कर्मकुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्म्न्ः।
तत्प्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जयेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस कार्य से मन को शांति तथा अंतरात्मा को खुशी हो वही करना चाहिये। जिस काम से मन को अशांति हो उसे न ही करें तो अच्छा।
तत्प्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जयेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस कार्य से मन को शांति तथा अंतरात्मा को खुशी हो वही करना चाहिये। जिस काम से मन को अशांति हो उसे न ही करें तो अच्छा।
यद्यत्परवशं कर्म तत्तद्यलेन वर्जयेत्।
यद्यदात्मवशं तु स्यात्तत्तत्सेवेत यत्नतः।
हिन्दी में भावार्थ-जिस काम के लिये दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है उनका त्याग कर देना चाहिये तथा अपने हाथ से ही संपन्न होने वाले अनुष्ठान करना चाहिए।
दूसरों से अपने काम में सहयोग मिलने की अपेक्षा करना व्यर्थ है। अगर करें तो भी तो यह भी देखें कि आपने किसी को कितना सहयोग दिया है। फिर यह भी देखें कि जिसका सहयोग किया है कि उसमें प्रत्युपकार की भावना है कि नहीं। कहने का अभिप्राय यह है कि दूसरों पर निर्भर रहने वाले काम को प्रारंभ ही न करें तो अच्छा है।
इसके अलावा ऐसे भी काम न करें जिससे मानसिक क्लेश बढ़ता हो। आजकल खानपान तथा रहन सहन की वजह से लोगों में असहिष्णुता के साथ ही अहंकार की भावना बढ़ गयी है। अतः जरा जरा सी बात पर लोग उत्तेजित होकर लड़ने लगते हैं। अगर हमारे अंदर तनाव झेलने की क्षमता नहीं है तो फिर चुपचाप रहकर अपना काम करना चाहिये। अगर कोई व्यक्ति गलत काम कर रहा है तो उसे अनदेखा करें। कोई गलत व्यवहार करता है तो उसकी उपेक्षा कर दें। ऐस कुछ पल जिंदगी में आते हैं-यह सोचकर आगे बढ़ जायें। अगर आपने प्रतिवाद किया तो सामने वाले की उग्रता अधिक बढ़ेगी तब वह अधिक तनाव दे सकता है। ऐसे में हमें दूसरे का व्यवहार नहीं बल्कि अपनी मनस्थिति को देखना चाहिये जो तनाव नहीं झेल पाती। जहाँ तक हो सके चुप होकर अपना काम करना ही श्रेयस्कर है।
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संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior---------------------------
http://deepkraj.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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2 comments:
ज्ञानबर्धक
aapke pryaas sarhaaniya hai....
lage raho...
kunwar ji,
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